पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११

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भाषा का प्रश्न प्रयोग करते हैं उसका नाम संस्कृत है। इस संस्कृत वाणी के भी दो रूप हैं-द्विज़ी और मानुषी। वानरवर हनूमान द्विजी भाषा का प्रयोग इसी लिये नहीं करते कि कहीं सीता उन्हें मायावी रावण न समझ लें। निदान निश्चित कर लेते हैं कि मानुषी साषा का प्रयोग करना चाहिए । उक्त मानुषी भाषा हनूमान् की निजी भाषा नं थी। संसर्ग या संपर्क में आ जाने के कारण उन्हें इसका बोध हो गया था। छध्ययन तथा.. अभ्यास के कारण उन्हें इसके द्विजाति रूप का भी पूरा पूरा पता था। उसके व्यवहार में भी वे निपुण. हो गए थे। उनके द्विजातिभाषण के विषय में राम की सम्मति है: नाऋग्वेद विनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः । 'नासामवेदविदुषः शक्यमेवं विभाषितुम् ।। नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम् । बहु व्याहरताऽनेन न किंचिदपशव्दितम् ।। न मुखे नेत्रयोश्चापि ललाटे च भ्रु वोस्तथा । अन्येष्वपि च सर्वेषु दोषः संविदितः क्वचित् ।।

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१-वेदों के उल्लेख से प्रकट होता है कि वानरवर हनूमान् की संस्कृत वाणी वैदिक भाषा की परंपरा में थी। आर्येतर जातियों में भी वेद का पठन-पाठन होता था । आधुनिक संशोधकों ने हनूमान् को द्रविड़ देवता सिद्ध किया है और द्रविड़ों को ही वानर का पर्याय माना है। वेदवारणी किस प्रकार संस्कृत बन गई इसका कुछ अाभास प्रकृत अवतरण में मिल जाता है। भाषाविदों के लिये यह बड़े काम का है।