पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०४

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-- वली की हिंदी अवाम देहाती अब भी जान के माने में बोलते हैं। --कुल्लियात पृ० ह शार्जुन--एक कदीर पहलवान जो बड़ा तीरंदाज़ था ।


कुल्लियात पृ० द

तपती या तवती-शहर सूरत में एक दरिया है । -कुल्लियात पृ० त सोई हनूद की जवान में खाने को कहते हैं। -कुल्लियात पृ० म कासी-काशी (शहर इलाहाबाद)। कुल्लियात पृ० फ बस । इस आगे कुछ और उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं। अभी इतने से ही संतोप कीजिए और इसको देखकर यह बता दीजिए कि आज जो हमारी सातृभाषा कही जाती है और हिंदू-मुसलिम एकता की एकमात्र निशानी समझी जाती है उसके आचार्च वली हमारे देश, हमारी परंपरा और हमारी भूमि से कितने परिचित हैं और किस रूप में कहाँ तक हमारी बातों का सत्कार करते हैं। विचार करने की बात है कि वली की इस हिंदी-प्रवृत्ति में भयंकर परिवर्तन करनेवाले कौन से कारण थे, जिन्होंने उन्हें 'रेखते से हटाकर 'उका बाबा आदम' बना दिया और जनाव अहसन साह्य मारहरवी से काशी को इलाहाबाद' लिखा दिया। कारण प्रत्यक्ष है। उनका मत है- हक साहब जो प्रान हिंदोस्तानी' (उ) के लिये प्राणपण से तुले हुए हैं और अंजुमन-तरक्की-उर्दू-हिंद के सर्वेसर्वा हैं ।