पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१२७

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भापा का प्रभ १२२ "दर जवाने हिंदी कि मुराद उर्दू अस्त ।......फोर्ट विलि- यम कालेज की तसनीकात में यह ल.पज जवान के मानों में आम तौर से बोला गया है। इन हवालों से जाहिर होता है कि उर्दू ज़बान के नाम के तौर पर आज से सिर्फ डेढ़ सौ बरस पहले की ईजाद है। फोर्ट विलियम कालेज पर उर्दू वालों ने धावा बोल दिया है और कुछ लोग उसके मुंशियों की रूह तक की खूब खबर ले रहे हैं। चुनांच उर्दू के प्राण मौलाना हकप फरमाते हैं- "फोर्ट विलियम कालेज के मुंशियों ने (खुदा उनकी अरवाह को शरमाए) बैठे विठाए बिला वजह और वगैर जरूरत यह शोशः छोड़ा। लल्लूजी लाल ने जो उर्दू के जबाँदाँ और उर्दू कितावों के मुसन्निक भी थे, इसकी विना डाली। वह इस तरह कि उर्दू की बाज़ कितावें लेकर उन्होंने उनमें से अरवी, फारसी लफ्ज़ चुन चुनकर अलग निकाल दिए और उनकी जगह संस्कृत और हिंदी के नामानूस ल.फ्ज़ जमा दिए, लीजिए. हिंदी बन गई। इच्छा तो नहीं थी कि इस प्रकार की हवाई और वे सिर-पैर की बातों पर विचार करें, पर जब देखते हैं कि मौलाना हक का इलहाम उनके चेलों के लिये प्राप्त वाक्य क्या विधि-विधान बन जाता है और हमारे कुछ नेता भी उसे ब्रह्मवाक्य समझ लेते हैं तब इसकी अवहेलना भी नहीं हो सकती। कहने की ३--उर्दू, ( वही ) अपरैल सन् १६३७, पृ० ३८३ ।