पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१२९

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भागाका प्रभ "बहुत अच्छा, पर इसके लिये कोई पारनी लिखनवाला बीजे तो भली भांति लिग्बी जाय।" अब तो स्पष्ट हो गया कि मौलाना जिले का जाँदा समझने की कोशिश करते हैं या विना किती फारसीवाले की सहायता के उ की कौन का, रेग्यते की बोली में भी लिख नहीं सकता था यद्यपि बाद मकानदाबाद में नवरात्र मुबारक दौला के यहाँ सात वप रह चुका था। इसका एकमान कारण नहीं है। कि मौलाना हक तथा उनके हमजोलियों को उट्ट की वास्तविकता का टीक ठीक पता नहीं है और विला बजा और जरूरत इम तरह 'धर कूअर बतासै अक' को चरितार्थ कर रहे हैं। देखिए फोट विलियम कालेज के मुशियों से हिदायत्त की जाती है कि किताबी, मजलिसी या दरबारी उर्दू की जमरत नहीं है 'ठेठ हिंदुस्तानी', रबड़ी बोली', 'सलीस रवाजी रेखता', 'अपनी जवान मुवाभिक यहाँ तक कि हिंदी रेखता में लिखना शुरू करो। इसी से साहबों का काम चलेगा। १----'हिंदी रेखता का प्रयोग विशेष महत्व रखता है और बहुत कुछ महात्मा गाँधी के हिंदी-हिंदुस्तानी प्रयोग को वर करता है। जिस प्रकार श्राज हिंदुस्तानी, हिंदी और उर्दू के बीच की चीज समझी जाती है उसी प्रकार उस समय रेखताबीच की भाषा. समझो जातो थी। व्यवहार में जैसे हिंदुस्तानी उर्दू का काम करती है और उसी का साथ देती है वैसे ही रेखता उर्दू का साथ देती थी। यह कि हिंदुस्तानी और रेखता उर्दू के ही कुछ हल्के या भ्रामक नाम मतलब