पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१३४

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उर्दू की उत्पत्ति "उर्दू ने उसका (झारसी का) दूध पिया था, उसी के सहारे परवान चढ़ी और वह रंग-रूप निकला कि सबमें मकबूल हो गई। रक्तः रक्तः फारसी की जगह उसी का चलन हो गया। यह एक कुदरती असूल था। जिस तरह वाप का जानशीन बेटा होता है उसी तरह फ़ारसी की कायम मुक्काम उर्दू हो गई।" बात बिल्कुल सटीक है। . फारसी कभी हमारी राष्ट्रभाषा न थी। वह शाही, सरकारी या राज-मापा थी। उसकी जगह अँगरेजी ने छीन ली। उसी से उसकी बेटी को भिडना चाहिए। हिंदी हिंद की राष्ट्रभाषा रही है और आज हैं भी, चाहे राष्ट्र उसे स्वीकार करे चाहे दुतकारे पर हैं वही हमारी सच्ची राष्ट्र- भाषा। उर्दू सरकार की ओर से किस प्रकार हमारे ऊपर लादी गई, इसकी एक झलक आपको मिल गई। इसका पूरा पूरा पता १ ---हिंदी का तात्पर्य यह नहीं है जो अक्सर अनभिज्ञ लोग समने बैठे हैं। लल्लूजी लाल की भी हिंदो में 'यामिनीभापा' का वहिप्कार नहीं है। . 'उदू' के मुकाबिले में 'हिंदी' को खड़ा करना नादानी है। उर्दू की जोड़-तोड़ का शब्द 'खड़ी बोली' है.। उर्दू और खड़ी बोली के झगड़े ने प्रमाद या श्रमवश हिंदी-उर्दू के दंगल का रूप धारण कर लिया है। यह हमारी लापरवाही और मूढ़ता का द्योतक है। उर्दू भाषा का बहिष्कार किया और खड़ी बाली ने फारसी-अरबी का नतीजा अापके सामने है। हिंदी ने त्याग किसी का भी नहीं किया, पर उर्दू को कट्टी कैद के कारण वह उससे जर याने लगी और दुर्भाग्यवश यह दूरी बढ़ती ही गई। 11