$. गाली द तासी और हिंदी ने क्यों कहीं बढ़कर और साधु है। स्मरण रहे कि कट्टर मामी भान गासी द तासी की दृष्टि में भी हिंदी-उर्दू का प्रधान भेद केवल लिपि तथा लिखने के ढंग पर ही अवलंबित है। चुनांचः उनका साफ साफ दावा है कि उर्दू और हिंदी दोनों हिंदुस्तानी की शारखे हैं। दोनों के : अमिवान बन्न लज तहरीर का फर्क है। यह फर्क हिंदुस्तानियों की मजहबी इस्तलाक पर मवनी है, जिसकी निस्थत मैं बारहाँ. ताकिरह कर चुका हूँ" (वही पृ० ६६४ ) अस्तु, हमें पाठकों से कहना है कि हिंद के हित के लिये बल हिंदी तर्ज को स्वीकार करें और देखें कि जमाने की रंगत क्या है, किस तरह उनकी कुलकर्णी निन्द्रा ले उनका विनाश हो रहा है। याद रहे, यदि वे इस बार भी चूक गए तो कभी कहीं भी उनको ठिकाना न मिलेगा और भारत गारत होकर न जाने क्या बन जाएगा। काल उनकी कायरता को अधिक नहीं सह सकता। वह वीरों को पनपने का अवश्य अवसर देगा।