पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वामी दयानंद और उर्दू अशुद्ध किया। स्वामी दयानंद सरस्वती संस्कृत के पंडित और वैदिक धर्म के प्राचार्य थे। वे पहले संस्कृत में व्याख्यान किया करते थे। उनके एक व्याख्यान का अनुवाद पंडित महेशचंद्र न्यायरत्न ने उस दिन से उन्होंन निश्चय कर लिया कि 'हिंदी-भाषा-द्वारा ही उपदेश दिया करेंगे। स्वामीजी ने संस्कृत को छोड़ हिंदी -मापा को अपने विचारों का माध्यम केवल इसी लिये बनाया कि वह वस्तुतः आर्य या आर्यावर्त की भाषा थी। स्वामीजी उसी को राष्ट्रभाषा समझते थे। विचार करने की बात है कि श्री लल्लूजी लाल, महात्मा गांधी और स्वामी दयानद सरस्वती ने, जिनकी जन्म-भाषा गुजरातो थी, गुजराती का पक्ष न ले हिंदी भाषा का पक्ष क्यों ग्रहण किया और क्यों स्वामीजी ने तथा महात्मा गांधी ने अपनी टूटी-फूटी हिंदी में काम करना आरंभ कर दिया। बात यह है कि सचमुच हिंदी ही हिंद की राष्ट्र-भाषा थी और उसी के द्वारा जनता तक अपने विचार व्यक्त किए जा सकते थे। पढ़े-लिखे पंडितों की माध्यम तो संस्कृत-भाषा १-- खेद है कि इस तिथि का निश्चित पता न लगा। अनुमान है कि संवत् १६३१ या उससे कुछ पहले यह घटना घटी होगी। (देखिए महर्षि का संक्षिप्त जीवन-वृत्तांत, शताव्दी संस्करणम् पृ० ३४)।