पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१८४

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एक पाई सीका कहना न होगा कि कंपनी सरकार की आज्ञा के अनुसार कलकतं की टकसाल में उक्त 'सीका डाला गया और उस पर नागरी अक्षरों में लिखा गया ।-"एक पाई सीका"। इतना ही नहीं, टकसाल के साहब ने उस पर कुछ और भी कृपा की और अपनी ओर से उस पर एक त्रिशूल भी. बना दिया। यह त्रिशूल पैसे के दोनों ओर बना है। एक ओर फारसी के 'जुलूस' की 'सीन' पर है, तो दूसरी ओर फारसी के एक के 'काफ' पर। मतलब यह कि वह फारसी लिपि या मुसलिम संस्कृति का विरोधी नहीं समझा गया है, बल्कि उससे यह बताया गया है कि यह 'बनारस के मुल्क' का पैसा है। उस वनारस के मुल्क का जिसकी मुख्य नगरी (बनारस ) शिवजी के त्रिशूल पर टिकी है, वहीं वहाँ का राजचिह्न है। देखने की बात है कि अगरेजी सरकार की इस व्यवस्था में कितना मर्म छिपा हैं। इसमें कितनी एकता दिखाई देती है। होता भी क्यों नहीं ? आखिर पहले के परम स्वतंत्र, कट्टर, गाजो मुसलिम बादशाहों ने भी तो हिंदू चिह्नों और हिंदी लिपि तथा भाषा को अपनाया था। सिक्कों की कौन कहे, मसजिदों तक में संस्कृत को स्थान दिया था। हाँ, उसी संस्कृत को जो आज 'संसकिरित' के नाम से ठुकराई जा रही है और जीते-जागते मदी-गली क्या सड़ी तक सावित की जा रही है। क्या अब भी आपको यह मान लेने में कोई अड़चन दिखाई देती है कि आगे चलकर प्रमादवश ब्रिटिश सरकार ने नागरी को उड़ाकर उले रसातल भेजने की निंदनीय चेष्टा की और व्यर्थ