पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१८९

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३. भाषा का प्रश्न मीर अमन की 'उर्दू की ठेठ हिंदुस्तानी में शुद्ध संस्कृत शब्दों का कितना प्रयोग था, तनिक यह भी देख लीजिए । 'मुल्क जरवाद की रानी का किस्सा ले लीजिए। आरंभ में ही श्रापको दिखाई देगा: "मैं कन्या जेरवाद के देस के राजा की हूँ और वह गवरू जो जदान-सुलेमान में कैद है उसका नाम बहरहमंद है, मेरे पिता के मंत्री का बेटा है। एक रोज महाराज ने आग्या दी. कि जितने राजः और कुंवर हैं मैदान में जेर झरोके श्राकर तीर-अदाजी और चौगानबाजी करें तो घुड़चढ़ी और कसब हर एक का जाहिर हो। मैं रानी के नेरे जो मेरी माता थीं अटारी-अोझल में बैठी थी और दाइयाँ और सहेलियाँ हाजिर थीं। तमाशा देखती थीं। यह दीवान का पूत सब में सुदर था और घोड़े को कावे देकर कसब कर रहा था। मुझको भाया और दिल से उस पर रीझी। मुद्दत तलक यह वात गुप्त रही। आखिर जब बहुतं. व्याकुल हुई तब दाई से कहा और ढेर सा इनाम दिया ।" - वही पृ०८६) अस्तु, हिंदुस्तानी का जो नमूना सामने है उसमें यद्यपि देश को देस' और राजा को राजः' कर दिया गया है और इस प्रकार अपने विदेशी अथवा उर्दू पन की पूरी पूरी परख दी गई है तथापि यह आज की राष्ट्रभाषा हिंदुस्तानी का सच्चा नमूना नहीं हो सकता । क्योंकि इसमें कन्या, पिता, मंत्री, माता, सुदर, गुप्त और व्याकुल जैसे अत्यंत प्रचलित और जीते जागते शुद्ध संस्कृत शब्द आ गए हैं जिनको आज उदू के धनी मतरूक