पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साषा का प्रश्न ... थे। उनकी स्वभूमि में संस्कृत की प्रतिष्ठा थी। परंतु उनमें से जो दूर बस गए थे उनकी भाषा वही पैशाची रह गई थी अथवा वे देशगत प्राकृतों का व्यवहार करते थे। शालिवाहनः इसी ढंग के शासक थे। उन्हीं के शासन के कारण 'कुतलं. पिशाचदेश कहा गया है। कुतल के शालिवाहन को संस्कृत-प्रेमी बनाने के लिये जो 'मोदकं देहि' का अस्त्र निकाला गया वह निष्फल न गया। शर्ववर्मा ने कातंत्र नामक सरल संस्कृत व्याकरण का सृजन किया और शालिवाहन संस्कृत में पारंगत हो गए। धारानगरी के भोजराज (१०१८-१०५६ ई.) को भी संस्कृत-भाषण का शौक था। एक दिन आपने एक दरिद्र ब्राह्मण को कंधे पर लकड़ी ढोते देखकर प्रश्न किया :---- "भूरिभारभराकान्त बाधति स्कन्ध एष ते।" उसने निवेदन किया:---- "तथा न बाधते स्कन्धो यथा वाधति बाधते।। ( सरस्वतीकंठाभरण, प्र० प०६१) तात्पर्य यह कि ब्राह्मण 'बाधति' के अशिष्ट प्रयोग से व्यथित हो गया और भोजराज को ऐसा सटीक उत्तर दिया कि वे संस्कृत के परम आश्रय बन गए। verse. Flattery or not, it was obviously not absurd to ascribe to a Kşatrap of foreiga extraction skill in Sanskrit poetry.” ( History of S. Literature Oxford. 1938 P. 49)