पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५०

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४५ राष्ट्रभाषा की परंपरा पभ्रश आधुनिक गुजराती की जननी है। कुछ भी हो, इतना कहने से हमें कोई रोक भी नहीं सकता कि वास्तव में नागर राष्ट्र-अपभ्रश का नाम है। उस अपभ्रंश का नाम है जो इसलाम के पहले भारत की चलित काव्यभाषा थी और नागरों के प्रयास से परितः पुष्ट हो समस्त देश की व्यवहार की भाषा बन गई थी। अजब नहीं कि तुरुको ने आरंभ में इसी को रेखता' कहा हो और 'हिंदी' के नाम पर इसी में रचना प्रारंभ की हो। रेखता का एक अर्थ अपभ्रंश भी है और दक्खिनी कषियों ने 'गूजरी' का उल्लेख भी किया है। 'गृजरी' अवश्य ही 'गुर्जरी से बनी है, न कि गुजराती से जैसा कि कुछ लोग खयाल करते हैं। हाँ, तो निवेदन यह कर देना था कि इसलाम क्या मसीह के बहुत पहले वाल्मीकि के समय में संस्कृत भारत की राष्ट्र- भाषा थी। उस समय सभी भाषाओं की भाँति उसके भी दो रूप थे। वाल्मीकि ने एक को 'द्विजाति' और दूसरे को 'मानुपी' कहा है। भापा के द्विजाति रूप को शिष्टों ने अप- नाया और उसको और भी शिष्ट तथा संस्कृत बना लिया। वह शिष्टों की भाषा तथा समस्त देश की शिष्ट राष्ट्रभाषा बरावर बनी रही। अब्रह्मण्यों ने पहले उसकी उपेक्षा की, किंतु फिर सोच-समझकर उसे अपनी शिष्ट और व्यापक राष्ट्र- भापा मान लिया। गुप्तों तथा राजपूतों के प्रोत्साहन से उसमें फिर जान आ गई और भारत में इसलाम के फैलने के पहले गाँव-गाँव और घर-घर में उसकी प्रतिष्टा हो गई, कथा-पुराण के