पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५३

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मापा का प्रश्न जो सदा मराठी और प्रतीच्य में गुजराती ने संपन्नता प्राप्त कर ली। राजभाषा फारसी से उनका कोई भी सीधा संबंध न था। उसे राष्ट्रभाषा के रूप में. । स्वीकार करना उनके लिये असंभव था। मुसलिम प्रचारक या संत सूफी भी स्थानीय देशवाणी को अपने प्रचार या उपदेश का साधन बनाते थे। उनके प्रयत्न से राष्ट्र भाषा का अहित हो रहा था। पर उतना न हो सका जितने की आशंका की जाती थी। उनका भी प्रधान केंद्र ब्रह्मर्षि देश ही था। उनके द्वारा भी उसी ब्राह्मी का प्रचार हुआ से, किसी न किसी रूप में, समस्त देश की राष्ट्रभाषा रही है। और फलतः आज भी है। उसी को श्राज हम आप हिंदी अथवा हिंद की राष्ट्रभाषा कहते हैं। उसी को कल मुसलमान भी मुल्की जबान कह रहे थे। अंगरेजों के आने और फारसी के उठ जाने से देश में 'इम्तयाज' के लिये जो एक नई जबान ईजाद हुई उसी को आज भ्रम, नीति. अथवा प्रमाद-वश कुछ लोग 'मुल्की' या 'मुश्तरकः जवान' कर रहे हैं जिसमें सत्य का लेश भी नहीं है। अल्बेरूनी ( १०३० ई०) की गवाही से सिद्ध होता है कि भारत में मुसलिम शासन स्थापित होने के पहले यहाँ एक ही 8-"Further, the language is divided into a neg- lected vernacular one, only in use among the common people, and a classical one, only in use among the upper' and educated classes, which is much cultivated