पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६५

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सापा का प्रश्न उर्दू के इतिहास से अनभिज्ञ होने के कारण यह प्रवाद सहसा फैल गया कि उर्दू मुसलमानों की भाषा है। उनकी मजह्वी जवान है। उर्दू के जन्म से पहले हिंदी ही मुसलमानों की भाषा थी। उसी में धार्मिक पुस्तकें भी लिखी जाती थीं। उनका नाम भी हिंदी होता था। अभी उस दिन फजली ने 'दह- मजलिस को 'करवल कथा' के शुद्ध संस्कृत नाम से प्रचलित किया था और करवल को 'करवला का द्योतक तथा पशुबल का चोधक बना लिया था। भारत के मुसलमानों ने भारत की भारती का निरादर तो तब किया जब वे कहीं के न रह गए। भाषा से परास्त होकर. फारसी किस तरह उर्दू के रूप में दरवारी मजलिसों में चल निकली, इसकी चर्चा का यह स्थान नहीं। यहाँ इतना ही जान लीजिए कि आसमानी किताबों के. पाबंद किसी जमीनी जबान को मजहबी जवान कह ही नहीं सकते। . यही कारण है कि तुर्क और फारस आज अरवी का वहिष्कार करने पर भी सच्चे मुसलिम बने हुए हैं और भारत के मुसलमानों के नाज के कारण हो रहे हैं। हाँ, कट्टर अहमदी अवश्य ही नहीं रहे। अँगरेजों की देख-रेख तथा सर सैयद अहमदखाँ की कृपा से हिंदी-उर्दू का फसाद किस तरह खड़ा हुआ और किस तरह चटपट मजहबी रूप में सामने लाया गया, इसका भी एक . रहस्य है। इसका उद्घाटन शीघ्र ही कर दिया जायगा। अभी इतना जान लीजिए कि सैयद अहमदखाँ ने अपनी युवावस्था के दिनों में साफ साफ लिख दिया था : .