पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/९२

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सर सैयद हिंदुस्तानी अब पाठक स्वयं चिचार लें कि सत्य क्या है। और मौलाना हाली में कौन कितना साधु है और किसका कहना ठीक है। हम इस प्रसंग को अधिक बढ़ाना व्यर्थ समझते हैं पर यहाँ इतना स्पष्ट निवेदन कर देना अपना धर्म समझते हैं कि देश तथा कांग्रेस ने कभी उक्त हिंदुस्तानी यानी उर्दू को राष्ट्रमापा के रूप में स्वीकार नहीं किया, बल्कि उस हिंदुस्तानी को महत्त्व दिया, जो देश की भाषा यानी हिंदी हिंदुस्तानी है; वह हिंदुस्तानी हैं जो भाषाविदों की प्रचलित हिंदुस्तानी है और जिसके विषय में सर सार्ज ग्रियर्सन की राय है कि वह हिंदी तथा उर्दू की मूल भाषा अर्थात् प्रकृति है। कंपनी सरकार ने इसी हिंदुस्तानी को अपनाया और उसका नाम भी 'हिंदी' या नागरी' ही रखा। कहीं भी उसके साथ 'फारसी अकर' की व्यवस्था या 'उर्दू जवान' की पैरवी नहीं की। करती भी कैसे ? उस समय उर्दू के हिमायती फारसी पर लट्ट थे और फारती ही उस समय की शाही जवान श्री । उनको 'उदू की चिंता तो तब हुई, जब फारसी दफ्तर से बाहर हुई। लोग कहते हैं, अँगरेजों ने फारसी को दफ्तर से निकाल दिया । हमारा दावा है कि सरकार ने हिंदी यानी हिंदुस्तानी को दप्तर से निकाल कर उसकी जगह हिंदी फारसी यानी उर्दू को बिठा दिया। देखिए भाषा सत्र को भूमिका, प्रथमखंड अथवा नयाँ भाग,