पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०९
पहिला हिस्सा
 

में आने के लिये था, दूसरा रास्ता सुरंग के बाहर निकल जाने के लिये था,और तीसरा तथा चौथा रास्ता (या सुरंग) कला और विमला को घाटी मेंआने के लिए था। एक रास्ता तो ठीक उस घाटी में आता था जिधर से प्रभाकरसिंह पाए थे और दूसरा रास्ता विमला के महल में जाता था।

विमला के घर आने वाले दोनो रास्ते एक रंग ढंग के बने हुए थे और इनके अन्दर के तिलस्मी दर्वाजे भी एक ही तरह के तथा गिनती में एक बराबर थे, अस्तु एक सुरंग का हाल पढ कर पाठक समझ जायंगे कि दूसरी तरफ वाली सुरंग की अवस्था भी वैसी ही है जो विमला के घर को जाती है।

उस सुरंग के चौमुहाने पर पहुंँच कर जब विमला को घाटी में आने वाली सुरंग की तरफ वढिये तो कई कदम जाने वाद एक ( कम ऊँँची) दहलोज मिलेगी जिसके अन्दर पैर रख कर ज्यो ज्यो आगे बढिये त्यो त्यो वह दहलीज ऊँँची होती जायगी, यहाँँ तक कि बीस पचीस कदम आगे जाते जाते वह दहलीज ऊँँची होकर सुरंग की छत के साथ मिल जायगी और फिर पीछे की तरफ लौटने के लिए रास्ता न रहेगा । उसके पास ही दाहिनी तरफ दीवार के अन्दर एक पेंच है जिसे कायदे के साथ घुमाने पर वह दर्वाजा खुल सकता है । अगर वह पेंच न घुमाया जाय और दहलीज के अन्दर कोई न हो, और जाने वाला आगे निकल गया हो, तो खुदवखुद भी वह रास्ता वारह घण्टे के बाद खुल जायगा और वह दहलीज धीरे धीरे नीची होकर करीब करीब जमीन के बराबर अर्थात् ज्यो की त्यो हो जायगी।

रास्ता कँसा पेचीला भोर तग है इसका हाल हम चौथे वयान में लिख आए हैं पुन लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। लगभग तीन सौ कदम आगे जाने बाद एक और बन्द दर्वाजा मिलेगा जो किसी पेंच के सहारे पर खुलता और चन्द होता है। पेंच घुमा कर खोल देने पर भी उसके दोनो पल्ले अलग नहीं होते, भिड़के रहते हैं। हाथ का धक्का दीजिये वो खुल