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भूतनाथ
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कई सायत तक चुपचाप खडे रह कर कुछ सोचने के बाद उसने अपने बटुए में से सामान निकाल कर रोशनी की और तब आँखें फाड फाड कर चारो तरफ देखने लगा । उसने देखा कि यह सुरंग बहुत चौडी और कुदरती ढंग पर बनी हुई है तथा ऊँचाई भी किसी तरह कम नहीं है, तीन आदमी एक साथ खडे होकर उसमें बखूबी चल सकते हैं, मगर यहा पर इस बात का पता नहीं लगता कि यह सुरंग कितनी लम्बी है क्योंकि आगे की तरफ बिलकुल अवकार मालुम होता था। पीछे की तरफ देखा तो दर्वाजा बंद पाया जिसमें किसी तरह की कुएड़े खटके या ताले का निशान नहीं मालूम होता था।

गदाधरसिंह हाथ में बत्ती लिये हुए आगे की तरफ कदम बढ़ाये रवाना हुआ। लगभग डेढ़ सौ कदम जाने के बाद उसे पुन दूसरी चौखट लाँघने की जरूरत पड़ी। उसके पार हो जाने के बाद यह दर्वाजा भी आप से आप बन्द हो गया। उसने अपनी आखोंं से देखा कि लोहे का बहुत बड़ा तख्ता एक तरफ से निकल कर रास्ता बन्द करता हुआ दूसरी तरफ जाकर हाथ भर तक दीवार के अन्दर घुस गया, क्योकि वह पीछे फिर कर देखता हुआ आगे बढा था। वह पुन आगे की तरफ बढ़ा मगर अब क्रमश सुरंग तग और नीची मिलने लगी। उस कला का कहीं पता न लगा जिसे गिरफ्तार करने के लिए वह दाँँत पीस रहा था।

कई सौ कदम चले जाने के बाद पिछले दो दर्वाजों की तरह उसे और भी तीन दर्वाजे लांघने पडे मोर तब वह एक ऐसे स्थान पर पहुँँचा जहाँँ दो तरफ को रास्ता फूट गया था। वहा पर वह अटक गया और सोचने लगा कि किस तरफ जाय। कुछ ही सायत बाद एक तरफ से आवाज आयी, "मगर सुरंग के बाहर निकल जाने की इच्छा हो तो दाहिनी तरफ चला जा और अगर यहाँँ के रहने वालों को ऐयारी का इम्तिहान लेना हो और किसी को गिरफ्तार करने की प्रवल अभिलाषा हो तो बाई तरफ का रास्ता पकड!"

गदाधरसिंह चौकन्ना हो कर उस तरफ देखने लगा जिधर से आवाज आई थी मगर किसी आदमी को सूरत दिखाई न पडी। आवाज पर गौर