पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१५०

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दूसरा भाग है, खैर अब समझ लो कि मैं इस घाटी में पचास वर्ष से रहता हूं और यहां का हाल जितना मैं जानता हूं किसी दूसरे को मालूम नहीं है । इधर कई वर्ष हुए हैं कि मैं इस घाटी को छोड कर तोर्णयात्रा के लिए चला गया था। मेरा विचार था कि फिर लौट कर यहीं न पाऊँ और इसा लिए इसका दर्वाजा खुला छोड़ गया था पर ईश्वर की प्रेरणा से में घूमता फिरता फिर यहाँ चला पाया और जब इस घाटी के अन्दर गया तो देखा कि इसमें किसी दूसरे को अमलदारी हो रही है, भस्तु मैं इसका दाजा बन्द करता हुना बाहर निकल पाया और फिक्र में पड़ा कि इसके मालिक का पता लगाना चाहिये, क्योंकि इसके अन्दर जितने आदमी दिखाई पडे उनमें से कोई भी ऐसा नजर न आया जिसे मैं यहा का मालिकसम, इसी लिए मैं इसके अन्दर किसी से मिला नहीं और न किसी ने मुझे देखा। खैर यह जान कर मुझे प्रसन्नता हुई कि तुम यहाँ रहते हो । मैं बहुत ही प्रसन्न होता यदि तुम्हारी गृहस्थी या तुम्हारे बालबच्चे भी यहां दिखाई देते । मगर खैर जो कुछ है वही गनीमत है। मैं तुम्हें मुह- व्वत की निगाह से देखता हूं क्योंकि तुमसे मुझे एक गहरा सम्बन्ध है ? भूत । (पाश्चर्य से) वह कौन सा सम्बन्ध है? सापू० । सो कहने की कोई प्रावश्यकता नहीं क्योकि भूलता हूं जो तुमसे सम्बन्ध रखने को गात कहता हूँ। जो साधू है भोर जिसने दुनिया हो से सम्बन्ध छोड दिया उसे फिर किसी से सम्बन्ध रखने की जरूरत हो क्या है, मगर खैर फिर कभी जब तुमसे गिलूगा तव बताऊंगा कि मैं कौन हूँ, उस समय तुम मुझे मुहन्नत को निगाह से देखोगे और समझ जानोगे कि में तुम पर पयों कृपा करता हूँ.....प्रस्तु जाने दो...अच्छा तो तुम खुशी से इस घाटी में रहो, मैं इसका दर्वाजा खोल देता है बल्कि यह भी बताए देता हूँ किस तरह यह दवाजा खुलता पौर बन्द होता है। भूत । (प्रसन्नता से) ईश्वर हो ने मुझे पापसे मिलाया! मै बढ़े हो तरदुद में पड़ा हुमा था। अपने दोस्तों की तरफ से मुझे वही ही फिक्र यो जो इस पाटो के अन्दर इस समय कैद हो रहे हैं। मैं समझ रहा पा