पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१५५

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भूतनाथ ५० भूत० । जैसी मर्जी प्रापकी. अाजकल मेरो आर्थिक दशा बहुत ही खराब हो रही है, रुपये पैसे की तरफ से मैं बहुत हो तग हो रहा हूं। साधू० । तो इस समय जो खजाना मैं तुम्हें दे रहा हूं वह तुम्हारे लिए कम नही है, यदि तुम उसे उचित ढग पर खर्च करोगे तो वर्षों तक अमीर बने रहोगे और राज्यसुख भोगोगे, प्रामो मेरे पीछे पीछे चले भायो । इतना कह फर साधू एक गुफा की तरफ बढ़ा मोर भूतनाथ खुशी खुशी उसके पीछे रवाना हुमा । खोह के अन्दर बहुत अन्धकार था मगर भूतनाथ बेघष्ठक साधू के पीछे पोछे दूर तक चला गया। जब लगभग दो तीन सौ कदम चला गया तो साधू ने कहा, "लडके देख मैं इस खोह के अन्दर अन्दाज से चला माकर सव काम कर सकता हू मगर तुझे इस काम में तकलीफ होगी क्योंकि तेरे लिये यह पहिला मौका है, इसलिए मैं उचित समझता हूं कि तू मपने ऐयारी के बटुए में से सामान निकाल कर रोशनी कर ले और अच्छी तरह से सब कुछ देख ले, फिर दूसरी दफे तेरे ऐसे होशियार भादमी को रोशनी की जरूरत न पडेगी।" भूतनाथ ने ऐसा ही किया, अर्थात् रोशनो फरके अच्छी तरह से देखता हुप्रा साधू के पीछे पीछे जाने लगा और ऐसा कहने और करने से साधू पर उसका विश्वास भी ज्यादे हो गया । करीव करीव पांच सौ कदम के चले जाने वाद रास्ता वन्द हो गया और साधू महाशय ने खडे होकर भूतनाथ से कहा, "वस मागे जाने का रास्ता मही है, देख वह बगल वाले पाले में कैसा प्रच्छा नाग बना हुआ है जिसे देख कर डर मालूम होता है । यह वास्तव में लोहे का है। इसको पफड कर जव तू अपनी तरफ बँचेगा तो यहा का दर्वाजा खुल जायगा, मगर इस बात से होशियार रहियो कि इसके सिर भयवा फन के कार कमी हाथ न लगने पावे नही तो घोखा खायगा।" भूत जो माज्ञा,पहिले पाप ही इसे खै, जिसमें में अच्छी तरह समझ लू साघू० । (जोर से हम कर) अभी तक तुमको मुझ पर भरोसानहीं होता