पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१५९

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भूतनाथ भूतनाथ वडी देर तक खडा खडा इस बात को सोचता रहा कि यह साधू महाशय कौन हैं और मुझ पर इतनी कृपा करने का सबब क्या है ? सोचते सोचते उसका खयाल देवदत्त ब्रह्मचारी की तरफ चला गया जिन्होने उसे पाला था और ऐयारी सिखा कर इस लायक बना दिया था कि किसी राजा या रईस के यहा रह कर इज्जत और हुर्मत पैदा करे । भूतनाथ सोचने लगा कि 'ताज्जुब नही यदि यह मेरे गुरु महाराज देव- दत्त ब्रह्मचारी ही हो जो बहुत दिनो से लापता हो रहे है । मुझे रणधीरसिंहजो के यही नोकर रखा देने के बाद वह यह कह कर चले गये थे किभव मै योगा- भ्यास करने के लिए उत्तराखण्ड चला जाऊंगा, तुम मुझसे मिलने के लिए उद्योग मत करना । या सम्भव है कि उनके भाई ज्ञानदत्तजी ब्रह्मचारी हों जिनको प्राय गुरूजी तारीफ किया करते थे भोर कहते थे कि वे एक अद्भुत तिलिस्म के दारोगा भी है । जहाँ तक मेरा खयाल है उन्हीं दोनो मे से कोई न कोई जरूर है । ताज्जुध नही कि में कुछ दिनों में तिलिस्म का दारोगा धन जाऊ । अव मै इस घाटी को कदापि न छोड़ गा और देखू गा कि किस्मत क्या दिखाती है । अव प्रभाकरसिंह को भी लाकर इसी घाटी में रखना चाहिए । मगर वास्तव मे प्राजकल मैं वहे सकट में पड़ गया हूं। मैं अपने मित्र इन्द्रदेव पर मिस तरह अविश्वास करूं और किस तरह भरोसा ही करू, किस तरह समझू कि जमना और सरस्वती बिना किसी की मदद के मुझसे दुश्मनी करने के लिए तैयार हो रही है ! खैर जो कुछ होगा देखा जायगा, भव प्रभाकर सिंह को शीन इस घाटी में ले भाना चाहिए और उसके बाद इन्द्रदेव से मिलना चाहिए । उनस मुलाकात होने पर बहुत सी वातो का पता लग जायगा । मै इन्द्रदेव के सिवाय पोर किसी से डरने वाला भी नहीं है।' इत्यादि तरह तरह की बातें सोचता हुमा भूतनाथ अपने दोस्तो और साथियों के पास चला गया और उनसे अपने कर्तव्य के विषय में बातचीत 1

  • देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति वाईसवा हिस्सा, भूतनाथ की जीवनी ।।