दूसरा भाग करने लगा, मगर साधू महाशय को कृपा से खजाना मिलने का हाल उसने सन लोगो से नहीं कहा । सातवां ज्यान जमानिया वाला दतीपशाह का मकान बहुत ही सुन्दर और ममोराना टंग पर गुजारा करने लायक बना हुया है। उनमें जनाना और मर्दागा किता इम ठग से बनाया गया है कि भीतर से दवाजा खोल कर जब चाहे एक कर लें और अगर भोतरी रास्ता बन्द कर दिया जाय तो एक का दूसरे से फुटर भी उम्पन्य न मालूम पडे, यहाँ तक कि अगर मर्दाने मकान में कोई मेहमान पाकर टिके तो उसे गायक इमनात का पता भी न लगे कि जनाने लोग कहा रहने हैं और उस तरफ पाने जाने के लिए इस तरफ से कोई गल्ता भी है या नहीं। इस मकान के सामने एक छोटा सा सुन्दर नगरवाग बना हुआ था घऔर उसके सामने अर्थात् पूरब तरफ ऊंची दीवार पोर फाटक था। मकान याई तरफ लम्बा सपहन पा जिनका एक सिरा तो मकान के साथ सटा हुमा पा और दूसरा सिरा सामने श्रति फाटक यानी दीवार के साथ। इसने नोच में छोटे बडे वाई दालान पोर कोठडिया ननो हुई थी जिनमें दलाप- शाह के खिदमतगार प्रोर सिपाही लोग रहा करते थे। इसी तरह मकान के दाहिनी तरफ इस निरे से नेफर उस सिरे तक कुछ ऐसी इमारतें बनी हई घो जिनमें कई गृहस्पियो का गुजारा हो मफता घा और उनमें दलीप. साह के शागिर्द ऐयार लोग रहा करते थे । इच टग पर वह नजरबाग बोच में पर्षात् चागे तरफ से घिरा हुग्रा पा । सरपरी तौर पर पयाल करने से भो साफ मालूम होता था कि दलीपशाह बहुत हो प्रमीगना टंग पर रह फर जिन्दगी के दिन बिता रहा है। ?स इमारत के बगल ही में दलीपशाह का एक बहुत बड़ा सुला हुमा भाग पा जिसमें बठे वडे ग्राम नीबू गौर अमरूद तया इमी तरह के और भी बहुत विस्म के दरस्त लगे थे।
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