पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूतनाथ भूतनाथ को इन भफिर्यो के गायब होने का बडा ही दुःख हुआ। रात के समय उसने किसी को कुछ कहना मुनासिब न समझा और चुप हो रहा, मगर रात भर उसे अच्छी तरह नींद न आई भौर क्रोध के मारे उसने कुछ भोजन भी नहीं किया । भोला सिंह कुछ देर के बाद उसके पास से हट गया और किसी दूसरी ही गुफा के बाहर बैठ कर उसने रात बिताई । जब घण्टे भर रात वाको रही तब वह घबडाया हुआ भूतनाथ के पास आया और देखा कि वह गहरी नींद में सो रहा है। भोलासिंह ने हाथ से हिला कर भूतनाथ को सचेत किया, वह धवडा कर उठ बैठा और बोला, "क्यो क्या है " भोला० । मालूम होता है कि प्राज फिर आपकी चोरी हुई। भूत० । सो कैसे? भोला । मैंने कई भादमियों को उस खजाने वाले सुरंग के अन्दर जाते मौर वहां से लदे हुए बाहर निकलते देखा है। भत० । फिर वे लोग कहा गये ? भोला । मालूम होता है कि सब घाटो के बाहर निकल गये, उत लोगों को नोचे उतर कर उस सुरग में जो बाहर निकलने का रास्ता है जाते देख लपका हुमा भापके पास चला पाया हू, प्रव प्राप शीघ्र उठिए और उन लोगो का पीछा कीजिये। मूतनाय घबडा कर उठ बैठा और बोला, "जरा देख ता लो कि यहाँ से कोन कोन गायम है ?" भोला ० । इस देखा देखी में तो बहुत देर हो जायगी और वे लोग दूर निकल जायगे। भूत० । मच्छा चलो पहिले वाहर हो चलें। दोनों आदमो तेजी के साथ पहाडी के नीचे उतर पाये और सुरग में घुस कर उस घाटी के बाहर निकले । यहा विल्कुल हो सन्नाटा था। थोडी देर तक ये दोनो आदमी इधर उधर घूमते रहे मगर जब कुछ पता न लगा .