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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१८४

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७७ दूसरा भाग - . . तो लौट कर सुरंग के मुहाने पर चले पाए और यो वातचीत करने लगे :- मोला० । मालूम होता है कि वे लोग दूर निकल गये, किस तरफ गये है इसका पता लगाना जल्दी मे नही हो सकता। भूत० । अच्छा तो तुम घाटी अन्दर जाओ और वहा जो लोग है उनका ख्याल रक्खो, मै पुनः घूम कर टोह लगाता हू और देखता हूँ कि वे लोग कहां गये। भोला । नही बल्कि प्राप ही घाटी के अन्दर जाइए और मुझे उन लोगो का पता लगाने की आज्ञा दीजिये, क्योकि जो लोग यहा से गये है वे अगर अपने हो आदमी हैं तो आखिर लौट कर यहा भावेंगे जरूर, ऐसी अवस्था मे जगदे देर तक पीछा करने की कोई जरूरत नहीं, इसके अति- रिक्त प्राप घाटी में जा कर इस बात का निश्चय कर सकते हैं कि वहा से कोन कौन प्रादमी गायब हैं क्योकि यह बात मुझे विल्कुल ही नहीं मालूम है कि आज कल विस किस को श्रापने किस किस काम पर मुस्तैद किया है तथा घाटी के अन्दर कौन कौन रहता है। भूत० । ठीक है अच्छा में हो घाटी के अन्दर जाकर पता लगाता हू कि कोन कोन गायर है । अफसोस सुरग के अन्दर का दर्वाजा खोलग बन्द कारना मैंने अपने मन प्रादगियों को पता दिया है, अगर बताता नही तो पाम भी नहीं चल सकता था क्योकि नित्य ही लोग पाते जाते रहते है, मेरी गैरहाजिरी में भी उन लोगो को जाना पडशा है । भोला 01 ठीक है बिना माये काम नहीं चल सकता था। भूत । एसके अतिरिक्त मैने उन सभी को यह भी हुक्म दे रकता है कि नित्य ही प्रात काल सूर्योदय के पहिले बारी बारी से दो चार प्रादमी घाटी के बाहर निकल कर इधर उधर घूमा फिरा करें, अगर वे लोग जिन्हें तुमने जाते देखा है लौट कर पायेंगे भी तो यही कहेंगे कि हम वालादवी*

  • घूम फिर फर पहरा देने मोर टो लगाने के लिए जाने को बाला-

दवी पहते है।