७६ दूसरा भाग दुश्मन हो जायेंगे और दुश्मनो से जा मिलेंगे, इससे यही बेहतर है कि इन सभी को जान से मार कर दखेडा त किया जाय।" इसी तरह की बातें सोचता हुघा भूतनाथ अपने डेरे को तरफ गया जहा प्रभाकरसिंह को कैद कर रखा था । वहा पहुंच कर देखा तो प्रभा- करसिंह भी गायव है। क्रोध के मारे भूतनाव की खेिं लाल हो गई, उसे विश्वास हो गया कि यह काम भी उमके आदमियो का ही है। भूतनाथ ने अपनी गुफा के बाहर निकल कर इशारे की जफोल बुलाई जिसके सुनते ही वे सन शागिर्द और ऐयार उसके पास भाकर इकट्टे हो गए जो इस समय वहा मौजूद थे। ये लोग गिनती में वारह थे जिनमें चार प्रादमो कुछ रात रहते ही वालादवो के लिए चले गए थे और वाकी पाठ श्रादमी मौजूद थे जो इस समय भूतमाथ के सामने पाये। कौन कौन आदमी वाहर गया हुपा है यह पूछने के बाद भूतनाथ ने कहा- भूत० । ( समो की तरफ देख कर ) वडे ताज्जुब की बात है कि प्रभाकरसिंह इस गुफा के अन्दर से गायब हो गये ! एक० । यह तो आप ही जानिए, क्योकि रात को प्राप ही उनके पहरे पर थे, हम लोगो में मे तो कोई यहा था नहीं। भूत० । सो तो ठीक है मगर तुम्ही सोचो कि यकायक यहाँ से उनका गायय हो जाना फैसी बात है ! दूसरा० । बेशक ताज्जुब को यात है। भृतः । इसके अतिरिक्त पोर भी एक बात सुनने लायक है। (उंगती से यता) इस गुफा फेअन्दर हमारा खजाना रहता है, उसमें से भी प्राजनायों रपये की जमा चोरी हो गई है, इस पहिले भी एक दफे चोरी हो चुकी है। एफ० । यह तो पाप और ताज्जुब की बात सुनाते हैं • मला यहां चोर पोंकर पा सकता है । इनफे सिवाय उस गुफा में पचासों दफे हम लोग गये है मगर वहाँ खजाना वगैरह तो कभी नहीं देखा, न माप ही ने
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