दूसरा भाग जफील बुनाई घोर उमो समय उसका जवाब भी पाया । भूतनाथ उठ खडा हुप्रा और उसी तरफ रवाना हुमा जिधर से जफील को पावाज आई थी। घोडी दूर जाने पर उसने अपने एक शागिर्द को देखा जिसका नाम रामदास था, इसे भूतनाप बहुत ही प्यार करता और अपने लडके के समान मानता था और वास्तव में रामदास बहुत चालाक पोर धूर्त था भी । यद्यपि उसकी उमर बीस साल के ऊपर होगी मगर देखने में वह बारह या तेरह वर्ष से ज्यादे का नहीं मालूम होता था। उसको रेख बिल्कुल ही नहीं पाई थी घऔर उसकी सूरत में कुदरती तौर पर जनानापन मालम होता था, यही सवय था कि वह औरतों को सूरत में बहुत अच्छा काम कर गुजरता था पोर हाव भाव में भी उससे किसी तरह को घुटि नही होतो घी । इस समय उसकी पीठ पर एक गठडी लदी हुई यो जिसे देख भूतनाथ को प्राश्चर्य हप्रा और उसने आगे बढ कर पूछा, "फहो रामदास, सैरियत तो है ? यह तुम विने लाद नाये हो ? मालूम होता है कोई मच्छा शिकार किया है ?" रामदास । ( कानी पखि से प्रणाम करके ) हा चचा, मैं बहुत HEBा शिकार कर लाया हूँ । भूतनाथ० । (प्रसन्न होकर) अच्छा अच्छा मामो, इस एत्यर की चट्टान पर बैठ जानो, देखें तुम्हारा शिकार कैसा है? भूतनाथ ने गडी उतारने में उसे मदद दो और दोनों प्रादमी एक पत्यर का पट्टान पर बैठ गये। मतनाय ने गठटो खोल कर देखा तो एक वेदोश मौरतु पर निगाह पहो । उसने पूछा, “यह कौन है ?" रापास० । यह जमना पौर सरस्वती को लौंडो है। मृतः । प्रच्छा, तुमने इसे कहो पाया ? रामदान । उसो पाटी के बाहर जिसमें वे दोनोरहती है । यह किसी शाम के लिए बाहर घाई घो पोर में पारको पाशानुसार उसी जगह छिप पर पहरा दे रहा था, मौका मिलने पर मने इसे गिरफ्तार कर लिया और जयन्तो बेहोश करपे, एक गुफा के मन्दर छिपा प्राया नहीं किसी को यका-
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