भूतनाथ . यक पता नहीं लग सकता था। इसके बाद मैं इसी को सूरत बन कर उस सुरग के पास चला पाया जो उस घाटी के अन्दर जाने का रास्ता है और जहां मैंने इसे गिरफ्तार किया था। मेरी यह प्रबल इच्छा थी कि उस घाटी के अन्दर जाऊ मगर इस बात की कुछ भी खबर न थी कि यह औरत जिसे मैंने गिरफ्तार किया है किस दर्जे की है या किस काम पर मुकर्रर है मौर इसका नाम क्या है, अस्तु इसके जानने के लिए मुझे कुछ पाखण्ड रचना पडा जिसमें एक दिन की देर तो हुई मगर ईश्वर की कृपा से मेरा काम बखूबी चल गया। मैंने सूरत बदलने के बाद इस लौंडी के कपडे तो पहिर ही लिए थे तिस पर भी मैं चुटीला बन कर एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गया और इन्तजार करने लगा कि घाटी के अन्दर से कोई भावे तो मैं उसके साथ भीतर पहुच जाऊँ । थोड़ी ही देर बाद जमना और सरस्वती स्वय घाटी के बाहर आई , उस समय मुझे यह नहीं मालूम हुमा कि यह ज मना और सरस्वती हैं मगर जब घाटी के अन्दर चला गया और तरह तरह को बातें सुनने में प्राई तब मालूम हुआ कि यही ज मना और सरस्वती हैं । यद्यपि ये दोनों कला और विमला नाम से पुकारी जाती थी मगर यह तो मैं प्राप से सुन हो चुका था कि उन्होंने अपना नाम कलापोर विमला रखा हुया है इसलिये मुझे असल वात जानने में कोई कठिनता न हुई ! खैर जब सुरंग के बाहर मुझे कला पौर विमला ने देखा तोपूछा, "परी हरदेई, अभी तक इसी जगह वैठी हुई है ?" मैंने धीरे से इसका जवाब दिया, "मैं पहाड़ो के ऊपर से गिर कर बहुत चुटीली हो गई हू, मुझ में दस कदम चलने की भी ताकत नहीं है बल्कि बात करने में भी तकलीफ मालूम होती है।" इसके बाद मैंने कई जगह छिले पोर कटे हुए जरूम दिखाए जो कि अपने हाथों से बनाये थे। मेरी अवस्था पर उन दोनों को बहुत अफसोस हुआ और वे दोनों मदद देकर मुझे अपनी घाटी के अन्दर ले गई और दवा इलाज करने लगा। दो दिन तक मै चारपाई पर पड़ा रहा और इस वीच मुझे बहुत सी बातें मालूम हो गई जिन्हें मैं बहुत ही सक्षेप के साथ इस समय बयान कस्गा । दो दिन
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