पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२४७

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भूतनाथ जरा लम्बा और चेहरा रोप्रावदार था । कपडे की तरफ ध्यान देकर कोई नहीं कह सकता था कि यह किस देश का रहने वाला है। भीतर चाहे जैसी पोशाक हो मगर ऊपर एक स्याह अवा डाले हुए, था और एक छोटी सी गठरी उसके हाथ में थी। पहिले से जो लोग उस कूए पर बैठे हसी दिल्लगी कर रहे थे उनके दिल में आया कि इस नये मुसाफिर से कुछ छेड छाड करें और यहा से भगा दें क्योकि वास्तव में काशी के रहने वाले अक्खड मिजाज लोगो की आदत ही ऐसी होती है, जहा इस मिजाज के चार पाच आदमी इकट्ठे होते हैं वहाँ वे लोग अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं और दूसरे लोगो से विना दिल्लगी किये नहीं रहते। एक० । (नये मुसाफिर से) कहाँ रहते हो साहव ? मुसाफिर० । गयाजी। दूसरा० । यहा कव पाये? मुसाफिर० । आज ही तो पाये हैं। दूसरा० । तभी आप इस कुएं पर पाए हैं, अगर कोई जानकार होता तो यहा कभी न पाता। मुसाफिर० । सो क्यो? चौथा० । यहा शैतान और जिन्न लोग रहते है, जो कोई नया मुसाफिर पाता है उसे चपत लगाए विना नहीं रहते। मुमाफिर० । ठीक है, तो तुम लोगो को भी उन्होंने चपत लगाया होगा? दूमरा० । (चिढ़ कर, जोर से) हम लोगो से वे लोग नही बोल सकते क्योंकि हम लोग यहां के रहने वाले हैं और उन समो के दोस्त हैं ? मुमाफिर० । वेशक शैतान के दोस्त शैतान ही होते हैं। चीया० । क्यो बे, मुह सम्हाल के नहीं वोलसा । मुसाफिर० । अवे तवे करोगे बच्चा तो ठीक करके रख देंगे हमें कोई मामली मुसाफिर न समझना ।।