पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२४८

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तीसरा हिस्सा पांचवा । । (ललकार) मार मारे के, दे अढया चपत । इतना कह कर पाचवा प्रादमी उठा और मयका तान कर उस मुना- फिर की तरफ झपटा । मारना ही चाहता था कि मुसाफिर ने हाथ पकट लिया और ऐमा झटका दिया कि वह कूए के नीचे जा गिरा और बहुत चुटीला हो गया। यह कैफियत देखते ही बाबू साहव तो डर के मारे कूए के नीचे उतर गये और किसी झाडी जाकर छिप रहे मगर वाकी के श्रादमी सव उस गुसाफिर पर जा टूटे और एक ने अपनी कमर में से एक पूरी भी निकाल ली, मगर उस मुसाफिर ने उन सभी को कुछ भी पर्वाह न को। वात की बात में उसने और तीन पादमियो को कूए के नीचे ढफेल दिया और उसके बाद कमर से संजर निकाल कर मुकाविले को तैयार हो गया। सजर की चमक देखते ही सभी का मिजाज ठगठन हो गया और मेल माकफत के टग की बातचीत करने लगे, मगर मुसाफिर का गुस्सा कम न हुग्रा मीर उराने लात तथा मुक्को ने सूब नभो की मरम्मत को, इसके बाद एक किनारे हट कर सजा हो गया और बोला, "पहो अब पया इरादा है ?" मुसाफिर की हिम्मत और मर्दानगी देख कर सभी को बडा ही प्राश्चर्य हमा । उन बात का गुमान भी नहीं हो सकता पा कि यह यफेला प्रादमी हम लोगो को इस तरह नीचा दिगा देगा। सभी ने नममा कि यह जार कोई राचस या जिन्न है जो प्रादमी पाप घर के हम लोगो पो पाने के लिए पाया है, घस्नु गिसी ने भी उगवी वातो का जवाब नहीं दिया कि तहुए अपना अपना मामान गौर गपटा लत्ता रठा कर भागने में लिए तंगर हो गये मगर मुसाफिर ने उन्हें ऐना गारने मरोरा पौर पहा, "गो नुम लोगों ने जान बुझ कर मुम्ने घंटगानी की और तपलोफ जमा प्रस्तुब शान्त हो पार बैठो और अपना अपना काम करो। तुकार म नादियों को सरल बोट शा गई है सो में घो पर पट्टी बायो पोर पुप देर घाराम नेने दो, और हा यह तो बतायो कि तुम्हारे व