पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६५

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" २२ भूतनाथ दिखाई नहीं देते थे या अगर कुछ थे भी तो केवल वे जगली पेह जो कि वहा बहते हुए एक चश्मे के सबब से कदाचित् बरावर ही हरे भरे रहते थे, हां केले के दरख्त यहाँ बहुतायत से दिखाई दे रहे थे और उनमें फल भी वहुत लगे थे। प्रभाकरसिंह थक गये थे इसलिए कुछ आराम करने की नीयत से बाहर किनारे एक चबूतरे पर बैठ गये और वहाँ की इमारतो को बडे गौर से देखने लगे। कुछ देर बाद उन्होने अपने बटुए में से मेवा निकाला और उसे खाकर चश्मे का विल्लीर की तरह साफ बहता हुआ जल पी कर सन्तोष किया । प्रभाकरसिंह सिपाही और बहादुर पादमी थे कोई ऐयार न थे मगर आज इनके बगल मे ऐयारी का बटुया लटका हुप्रा देख रहे है इससे मालूम होता है कि इन्होने सम गनुकूल चलने के लिए कुछ ऐयारी जरूर सीखो है मगर इनका उस्ताद कौन है सो अभी मालूम नही हुआ। हम कह चुके है कि यह वाग नाम मात्र को बाग था मगर इसमें इमारतो का हिस्मा बहुत ज्यादे था । वाग के बीचोबीच मे एक गोल गुम्बद था जिनके चारो तरफ छोटी छोटी पाच कोठडिया थी और वह गुम्बद इस समय प्रभाकरसिंह की पासो के सामने था जिसे वह बडे गौर से देख रहे थे । वाग के चारो तरफ चार बडी वडी वारदरिया थी और उनके ऊपर उतने ही खुबसूरत कमरे बने हुए थे जिनके दाजे इस समय वन्द थे, सिर्फ पूरव तरफ वाले कमरे के दर्वाजो में से खुला हुआ था और प्रभाकरसिह को अच्छी तरह दिखाई दे रहा था। प्रभाकर सिंह और कमरो तया दालानो को छोड कर उसो वीच वाले गुम्बद को बड़े गौर से देख रहे थे जिसके पारो तरफ वाली कोठडियो के दाजे वन्द मालूम होते थे। कुछ देर बाद प्रभाकर सिंह उठे और उस गुम्बद के पास चले गये । एक कोठरी के दर्वाजे को हाय से हटाया तो वह खुल गया प्रस्तु वह कोटरी के अन्दर चले गये। इस कोठरी की जमीन सग- मर्मर की थी और बीच में स्याह पत्यर का एक सिंहासन था जिस पर हाथ एक दर्वाजा