पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२३ तीमरा हिस्सा रखते ही प्रभाकरसिंह का शरीर कापा और वे चक्कर खाकर जमीन पर गिरने के साथ होवेहोश हो गये तथा उसी समय उस कोठडी का दर्वाजा भी वन्द हो गया। दिन बीत गया, आधी रात का समय था जव प्रभाकरसिंह को पाख खुली । अन्धेरी रात होने के कारण वे कुछ स्थिर नहीं कर सकते थे कि वे कहा पर है। घबराहट मे उन्होने पहिले अपने हों को टटोला और फिर ऐयारी का बटुआ सोला । ईश्वर को धन्यवाद दिया कि वे सब चीजें उनके पास मौजूद थी, इसके बाद वे विचारने लगे यह कि स्थान कैसा है तथा हमको अब क्या करना चाहिए । बहुत देर के बाद उन्हें मालूम हुआ कि वे किसी छोटे दालान में हैं और उनके सामने एक घना जगल है । इस अन्धकार के समय में उनको हिम्मत न पडी कि उठ कर इधर उधर घूमे या किसी बात का पता लगावें अस्तु उन्होने चुपचाप उसी दालान में पड़े रह कर रात विता दो। रात बीत गई और सूर्य भगवान का पेशवेमा प्रासमान पर अच्छी तरह तन गया। प्रभाफरविह उठ परे हुए और यह जानने के लिए उस दालान मे घूमने और दरोदीवार को अच्छी तरह देखने लगे कि वे क्योंकर इस स्थान में पहुचे तथा उनले यहा पाने का जरिया क्या है, परन्तु इस बात का उन्हे युध भी पता न लगा । उस दालान के नामने जो जगल था वह वास्तव में बहुत पना था और सिर्फ देखने से इस बात का पता नहीं लगता था कि वह फितना बटा है तथा उसके बाद किसी तन्ह की इमारत है या कोई पहाट, साथ ही इसके इन्हें इस बात की भी फिक्र थी कि अगर को पानो का चपमा दिवाई दे तो स्नान इत्यादि का काम चले। जगल मे घूम कर रया करें और किमको टूटे इन विचार में वे बहुत देर तक गोतते गौर सर उधर घूमते रह गये, यहा तक कि मयं भगवान ने नोचाई नाउमान का सफरत कर लिया और धृप गमी मातून होने लगी । उनी समय प्रभावित के कान में यह आवाज आई, "हाय, बहुत ही बुरे फसे यह मेरे पन्नों का फल है। ईश्वर न करे किसी...