पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६७

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भूतनाथ २४ वस इसके धागे की आवाज इतनी बारीक हो गई थी कि प्रकाकरसिंह उसे अच्छी तरह समझ न सके । इस मावाज ने प्रभाकरसिंह को परेशान कर दिया और खुटके में डाल दिया । नावाज जगल के बीच में से प्राई थी अतएव वे उसी आवाज की सीध पर चल पडे और उस घने जगल में दृढने लगे कि वह दुखिया कौन और कहा है जिसके मुह से ऐसी प्रावाज पाई है। प्रभाकरसिंह को ज्यादा ढूढना न पडा । उस जगल में थोडी ही दूर जाने पर उन्हें पानी का एक सुन्दर चश्मा दिखाई दिया और उसी चश्मे के किनारे उन्होने एक औरत को देखा जो वदह्वास और परंशान जमीन पर डो हुई थी भौर नमालूम किस तरह की तकलीफ से करवटें बदल रही थी। प्रभाकरसिंह बडे गौर से उम औरत को देखने लगे क्योकि वह कुछ जानो पहिचानी सी मालम पडती थो। उस औरत ने प्रभाकरसिंह को देख के हाथ जाडा और कहा, “मेरी जान बचाइये, मैं वेतरह इस माफत में फस गई हूं। मुझे उम्मीद थी कि अव कुछ ही देर मे इस दुनिया से कूच कर जाऊ गी, परन्तु आपको देखने से विश्वास हो गया कि अभी थोडी जिन्दगी वाकी है । आप वडे गौर से मुझे देख रहे हैं, मालूम होता है कि आपने मुझे पहिचाना नहीं । मैं आपको तावेदार लौडी हरदेई हू, श्रापकी स्त्री और सालियो की बहुत दिनो तक खिदमत कर चुकी है।" प्रमाकर० । हा प्रव मैने तुझे पहिचाना, कला और विमला के साथ मैने तुझे देखा था मगर सामना बहुत कम हुआ इसलिये पहिचानने मे जरा कठिनाई हुई, अच्छा यह तो वता कि वे तोनो कहा है ? हरदेई । मैं उन्ही को सताई होने पर भी उनकी ही खोज मे यहा माई थी, एक दफे ये तीनों दिखाई देकर पुन गायब हो गई प्राह अव मुभमे चोला नहीं जाना। प्रभाकर० । तुझे दिन वात की तकलीफ है ? हरदे० । में भूब से परेशान हो रही है । आज कई दिन से मुझे