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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२६८

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२५ तीसरा हिस्सा ? कुछ भी ग्वाने को नहीं मिला ..वस श्रव..प्राण निकला ही प्रभाकर० । तुझे यहाँ प्राये के दिन हुए हरदेई० । प्राज से सात.... बस इससे ज्यादे कुछ भी बोल न सको अस्तु प्रभाकरसिंह ने अपने वटुए मे मे कुछ मेवा निकाल कर खाने के लिये दिया और हाथ का सहारा देकर उने बैठाया । मेवा देख कर हरदेई खुश हो गई, भोजन किया और नहर का जल पीकर सम्हल वैठो और बोली, "अव मेरा जी ठिकाने हुना, अब मै बस्नूबी बातचीत कर सकती है।" प्रभाकर० । (उसके पास बैठ कर) अच्छा अव बता कि तुझे यहा पाये कितने दिन हुए और तूने कला विमला तया इन्दु को कहा और क्सि अवस्था मे देखा तथा क्योकर उनका साथ छूटा । क्या तू भी उन तीनो के साथ ही इस तिलिस्म में पाई थी? हरदेई० } नही मै तो वेसवव और विना कसूर के मारी गई । मैने प्राज तक अपने मालिको के साथ कोई बुराई नहीं की थी मगर न मालूम उन्होने क्यो मुझे इस तरह की सजा दी । यद्यपि उन्होंने अपना धर्म विगाड दिया था और जिस तरह सती साध्वियोको चलना चाहिए उम तरह नहीं चलती थी,पनी सुफेद और साफ चादर में बदनामी के कई घचे लगा चुको थीमगर मने घापसे भी इस बात को कभी शिकायत नहीं की और उनका भेद किसी तरह प्रगट होने न दिया, फिर भी अन्त में मैं ही कसूरवार समझो गई और मुझी को प्रारणदरार दिया गया, परन्तु ईश्वर को तृपा ने मैं जीती बच गई। अव मेरी समझ मे नही पाता कि मै रया कह प्रोर जो कुछ कहने की बातें है वह पापने.. पभाकर० । (युध घबडा कर) तू पया पह रही है । क्या कला और विमना गे सतीत्व में पव्याग दुना है और क्या उन दोनों ने अपनी पाल चलन पराव कर डाली है ? हरदे । वेगक ऐनी ही बात है । माज से नहीं बल्कि यापसे मुला- .