२७ तीसरा हिस्सा प्रभाकर० । हा तो जो कुछ असल मामला है तू वेखौफ होकर कह जा, मै प्रतिज्ञा करता हूँ कि तेरी रक्षा करू गा और तुझे इस आफत मे वचाऊंगा। हरदेई० । यदि श्राप वास्तव में प्रतिज्ञा करते है तो फिर मै सव वातें साफ साफ कह दूगी। प्रभाकर० । वेशक मै प्रतिज्ञा करता हू मगर साथ ही इसके यह भी कहता हूं कि अगर तेरी वात झूठ निकली तो तेरे लिए सबसे बुरी मोत का ढग तजवीज करूगा। हरदेई० । वेशक मैं इसे मजूर करती हू । प्रभाकर० । अच्छा तो जो कुछ ठीक ठीक मामला है तू कह जा और यह बता कि वह सव कहा गई और क्या हुई और क्योकर इस दशा को पहुची। हरदेई० । अच्छा तो मैं कहतो ह, सुनिए । कला और विमला की चालचलन अच्छी नहीं है । श्राप स्वयम् मोच सकते है कि जिन्हे ऐसी नौजवानी: स तन्ह को स्वतन्यता मिल गई हो और गहने तया ग्रानन्द करने के लिए ऐमा म्वर्ग-तुल्य धान मिल गया हो तथा दौलत की भी किसी तरह कमी न हो तो वे वाहा तक अपने वित्त को रोक नकती है ? पर जो कुछ हो, कला और विमला दोनो ही ने अपने लिए दो प्रेमी खोज निकाले पौर दोनो यो औरतो के भेप में टोक करके अपने यहा रस छोटा तथा नित्य गया प्रानन्द करने लगी, मगर साय हो इसके भूतनाय मे वदना नेने का भी ध्यान उनके दिल में बना रहा और उन दोनो मदों ने भी इस काम में वरापर मदद मागती रही। वे दानो मर्द कुछ दिन तक इस घाटी में रह आनन्द करने और फिर कुछ दिन के लिए कही चले जाया करते थे। प्रभाफर० । (बात काट कर) उन दोनो का नाम क्या पा हरदेई० । सो मैं नहीं रह सकती क्योकि कला और विमना ने वडी कारोगरी से उन दोनो का भेप वदल दिया था, कभी कभी मदान भैप में
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