पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२७१

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२० भूतनाथ रहने पर भी उनकी सूरत दिखाई नही देती थी, इसलिए मैं उनके नाम और ग्राम के विषय में ठीक तौर पर कुछ भी नहीं कह सकती, हो इतना जरूर है कि अगर मुझे कुछ मदद मिले तो मै उन दोनो का पता जरूर लगा सक्तो हू क्योकि एकान्त की अवस्था में छिप लुक कर उन लोगो को बहुत सी बातें सुन धुको हू जिनका प्रभाकर० । खैर इस बात को जाने दे फिर देखा जायगा, अच्छा तब क्या हुआ ? हरदेई० । वहुत दिनो तक कला और विमला ने उन दोनो से सम्बन्ध रक्खा मगर जब इन्दु इस घाटी में लाई गई और आपका पाना भी यहा हुमा तव वे दोनो कुछ दिन के लिए गायब कर दिए गये । मै ठीक नही कह सकती कि वे कहा चले गये या क्या हुए । मैं इस किस्से को बहुत मुख्तसर में वयान करती है। फिर जव प्राप विजयगढ और चुनार की लडाई में चले गये और बहुत दिनो तक आपके पाने की उम्मीद न रही तव पुन वे दोनो इस घाटी में दिखाई देने लगे। सग और कुमग का असर मनुष्य के ऊपर अवश्य पडा करता है । कुछ हा दिनो के वाद इन्दुमति को मैने उन दोनो में से एक के माय मुहब्बत करते देखा और इसी कारण से कला बिमला और इन्दुमति में अन्दर ही अन्दर कुछ खिंचाव भी हो गया था। मैं समझती हू फि भूतनाथ को इस विषय का हाल जरूर मालूम हो गया जिसने उन दोनो को रिश्वत देकर अपने साथ मिला लिया और उस घाटी में जाने माने का रास्ता देख लिया । इमो वोच में मैंने आपको उस घाटी मे देसा । पहिले तो मुझे विश्वास हो गया कि वास्तव में प्रभाकर- सिंहजी ही लडाई में नामवरी हासिल करके यहा आ गये हैं परन्तु कुछ दिन के बाद मेरा वह त्याल जाता रहा और निश्चय हो गया कि असल में प्रापको मूरत बन कर यहा पाने वाला कोई दूसरा ही था । में दस विषय में फला और विमला को बार बार टोका करती थी और पहा फरती चौ कि तुम लोगो के रहन सहन का यह ढग अच्छा नही