पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२७९

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भूतनाथ 3 1 उसका दोस्त यहा पाया होता तो भी बिना मेरी आज्ञा के उसे यहा से चले जाना मुनासिब न था । (भपना सर पकड के ) प्रोफ, सर में वेहिसाब दर्द हो रहा है । मालूम होता है कि जैसे किसी ने बेहोशी की दवा का मुझ पर प्रयोग किया हो । ठीक है, वेशक यह सरदर्द उसी ढग का है । तो क्या हरदेई की सूरत में वह कोई ऐयार तो नहीं था जिसने मुझे धोखा दिया हो (घबराहट के साथ जेब टटोल के ) आह, वह किताब तोजेब में है ही नही, मया कोई ले गया? या हरदेई ले गई ? (पुन उस किताब को अच्छी तरह खोज कर ) है, वह किताब नि सन्देह गायब हो गई और ताज्जुब नही कि यहो किताव लेने की नीयत से उस ऐयार ने मुझे बेहोशी की दवा दी हो और इसी किताब की मदद पाकर यहा से चला गया हो। अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो बहुत ही बुरा हुमा और मैंने बैढव घोखा खाया। लेकिन अगर वह वास्तव में कोई ऐयार था तो कला विमला और इन्दुमति वाली वात भी उसने झूठ ही कही होगी । ऐसी अवस्था में मैं उसका पता लगाये विना नहीं रह सकता और इस काम में सुस्ती करना अपने हाथ से अपने पैर में कुल्हाडी मारना है। इत्यादि वातो को सोच कर प्रभाकरसिंह पुन उठ खडे हुए और नकली हरदेई को खोजने लगे । अवकी दफे उनका खोजना वडी सावधानी के साथ था यहा तक कि एक एक पेड के नीचे जा जा और खोज खोज कर वे उसकी टोह लेने लगे । यकायक केलों की झुरमुट में उन्हें कोई कपडा दिखाई दिया, जब उसके पास गये और अच्छी तरह देखा तो मालूम हुप्रा कि वह र हरदेई का कपडा है, मुलाकात होने के समय वह यही कपडा पहिने हुए थी। और भी अच्छी तरह देखने पर मालूम हुआ कि वह साडी का एक हिस्सा है और खून से तर हो रहा है। वही जमीन और पेड़ों के निचले . हिस्से पर भी खून के छोटे दिखाई दिए । अव प्रभाकरसिंह का खयाल वदल गया और वे सोचने लगे कि क्या यहा कोई हमारा दुश्मन मा पहुचा भौर हरदेई उसके हाथ से मारी गई