पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२८५

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भूतनाथ ४२ इनका चेहरा विमला को अच्छी तरह दिखाई दे गया था। कला बिमला और इन्दु लपक कर प्रभाकरसिंह के पास मा गई । प्रभा- करसिंह भी अपने दिल का भाव छिपा कर इन लोगों से बातचीत करने लगे। प्रभाकर० ।'तुम तीनो यहाँ पर किस तरह मा पहुँची? मै तुम लोगों की खोज में बहुत दिनो से बेतरह परेशान हो रहा है । लडाई से लौट कर जब मैं तुम्हारी घाटी मे गया तो उसे विल्कुल ही उजाड देख कर मैं हैरान रह गया। इन्दु० । यही बात मै आपसे पूछने वाली थी, मगर विमला० । ताज्जुब की बात है कि आप कहते हैं कि लड़ाई से लौट कर जब हम उस घाटी में पाये तो उसे बिल्कुल ही उजाड पाया । क्या लडाई से लौटने के बाद आप हम लोगों से नहीं मिले ? और आपके घायल देह का हम लोगो ने इलाज नही करना चाहा ? या यह कहिए कि आपका जल्मी घोडा.आपको लडाई में से बचा कर भागता हुआ क्या हमारो-घाटी के बाहर तक नहीं भाया था । प्रभाकर० । न मालूम तुम क्या कह रही हो ?।मैं लडाई में से भाग फर नही पाया बल्कि प्रसन्नता के साथ महाराज सुरेन्द्रसिंह से विदा होकर तुम्हारी तरफ पाया था। इन्दुः । (ऊ ची सास ले कर ) हाय, वडाही अनर्थ हुमा | हम लोग वेढव धोखे में डाले गए? हाय प्रापका जख्मों को छिपाना हमे खुटके में डाल चुका था, परन्तु प्रेम । तेरा बुरा हो । तू ही ने मुझे सम्हलने न दिया। प्रभाकर० । (मन में) मालूम होता है कि हरदेई का कहना ठीक है और कोई दूसरा गैर प्रादमी मेरी सूरत वन कर इन लोगो के पास जरूर पाया था परन्तु इन्दु के भाव से यह नहीं जाना जाता कि इसने जान बूझ फर उसके साथ . प्रस्तु जो हो, सम्भव है कि यह अपने जवाव के लिए मुझे बनावटो भाव दिखा रही हो, हा यह निश्चय हो गया कि हरदेई एक दम झूठो नहीं है कुछ न कुछ दाल में काला अवश्य है । (प्रगट) मेरी समझ .