पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२८६

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तोसरा हिस्सा . में नहीं पाता कि तुम क्या कह रही हो, खुलासा कहो तो मालूम हो और विचार किया जाय कि मामला क्या है । क्या तुम्हारे कहने का वास्तव में यही मतलब है कि मै लड़ाई से लौट कर 'तुम लोगों से मिल चुका हूँ ? इन्दुः । वेशक श्रापका जख्मी घोडा आपके शरीरे को बचाता हुआ वहाँ तक ले आया था और हम लोग श्रापकोजव कि आपविल्कुल ही वेहोश थे उठा कर घाटी के अन्दर ले आए थे। प्रभाकर० । मगर ऐसा नहीं हुया। हरदेई ने तुम लोगो का पर्दा खोलते समय यह भी कहा था कि कोई गैर आदमी प्रभाकरसिंह वन कर उस घाटी में आया था और बहुत दिनो तक इन्दुमति ने उसके साथ इन्दु० । (वात काट कर) क्या यह वात हरदेई ने आपसे कही थी ? प्रभा० । हा वेशक ! साथ ही इसके (विमला की तरफ देख के) तुम लोगो के गुप्त प्रेम का हाल भी हरदेई ने मुझसे कह दिया था। इन्दु । हाय ! अब मैं क्या कहू ? (प्रासमान की तरफ देख के) हे सर्वशक्तिमान जगदीश । तू ही मेरा न्याय करने वाला है ? इतना कहते कहते इन्दुमति की अांखों से आंसुओ की धारा वह्न लगी। विमला० । मालूम होता है कि हरदेई ने मेरे साथ दुश्मनी की। प्रभाकर० । देशक। घिमला० ० । और उसी ने घाटी में प्रापसे मिल कर . प्रभाकर० । (वात काट कर) नही, 'वह मुझसे घाटी में नहीं मिली वंल्कि तुम लोगो का सताई हुई हरदेई इसी तिलिस्म के अन्दर मुझसे मिली भी। वेशक उसने तुम लोगो का भण्डा फोड के तुम लोगो के साथ बडी दुश्मनी को, मगर वह ऐसा क्यो न करती ? तुम लोगों ने भी तो उसके साय बडो वेदर्दी का वर्ताव किया था , प्रभाकरसिंह के मुंह में इतना सुनते ही कला विमला और इन्दुमति ने अपना माया ठोका और इसके बाद इन्दुमति ने एक लम्बी साँस लेकर प्रभाकरसिंह से कहा, "अगर मुझमें नामर्थ्य होती तो में जरूर अपना .