पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/२९३

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भूतनाथ ? गुलाबसिंह का कुछ पता है कि वह कहा है और क्या कर रहा है ? क्योकि तुम्हारी जुवानी जो कुछ सुना है उससे मालूम होता है कि वह प्रभाकरसिंह के साथ तिलिस्म के अन्दर नही गया । राम० । हा ठीक है, पर गुलावसिह का हाल मुझे कुछ भी मालूम नहीं हुा । अच्छा मैं एक वात आपसे पूछा चाहता हूँ। भूत० । वह क्या राम० । आपने जो अभी अपना हाल वयान किया है । उसमे चन्द्र- शेखर का हाल सुनने से मुझे वडा ही ताज्जुब हो रहा है । कृपा कर यह बताइये कि वह चन्द्रशेखर कौन है और आप उससे इतना क्यो डरते है। क्योकि उसे अपने कब्जे में करने की सामर्थ्य प्राप में नही है ? भूत० । (उसकी याद से काप कर) इस दुनिया में मेरा सबसे बड़ा दुश्मन वही है, ताज्जुब नहीं कि एक दिन उसी की बदौलत जीते जागते रहने पर भी मुझे यह दुनिया छोडनो पटे । वह बडा ही वेढव प्रादमी है, वडा हो भयानक है, तथा ऐयारी में भी वडा ही होशियार है । कुश्ती में मैं दो दफे उससे हार चुका हू और ऐयारी मे वह कई दफे मुझे जक दे चुका है ! आश्चर्य होता है कि उसके बदन पर कोई हरवा असर नहीं करता। न मालूम उसने किसी तरह का कवच पहिर रक्खा है या ईश्वर ने उसका वदन ही ऐसा बनाया है । उसके बदन पर मेरी दो तलवार टूट चुकी है। उसकी तो सूरत ही देख कर मै वदहवास हो जाता है। राम० । (आश्चर्य के साथ) आखिर वह है कौन ? भूत० । (कुछ सोच कर) अच्छा फिर कभी उसका हाल तुमसे कहेगे, इस समय जो कुछ बातें दिमाग मे पैदा हो रही है उन्हें पूरा करना चाहिए अर्थान् जमना सरस्वती और इन्दुमति के बखेडे से तो छुट्टी पा लें फिर चन्द्र- शेखर को भी देख लिया जायगा, प्राखिर वह अमृत पीकर थोडे ही माया होगा। इनना यह कर भूतनाथ उठ सहा हा और अपने दोनो शागिदों को