तनाथ 1 था और लडाई में अपनी तमाम कारीगरी खर्च कर रहा था मगर उस नकाबपोश के मुकावले वह बहुत दबा हुआ मालूम पडने लगा, यहा तक कि उसका दम फूलने लगा और नकाबपोश के मोढ़े पर बैठ कर उसकी तल- वार दो टुकडे हो गई। कुछ देर के लिए लड़ाई रुक गई और दोनो वहादुर हट कर खडे हो गये । उस शैतान दुश्मन को जिसका नाम इस मौके के लिये हम बैताल रख लेते हैं विश्वास था कि तलवार टूट जाने पर नकाबपोश उस पर जरूर हमला करेगा, मगर नकाबपोश ने ऐसा न किया । वह हट कर खडा हो गया और वैताल से घोला, "कहो अब किस चीज से लडोगे ? मैं उस आदमी पर हर्वा चलाना उचित नहीं समझ जिसका हाथ हथियार से खाली हो।" इसका जवाव वैताल ने कुछ न दिया, उसी समय नकाबपोश ने प्रभा- करसिंह की तरफ देखा और कहा, "मुझे तुम्हारी मदद की कोई जरूरत नही है, तुम (हाथ का इशारा करके। उन औरतों को सम्हालो और ढाढ़स दो जो इस शैतान के डर से बदहवास होकर भागी जा रही हैं या दुश्मन का मुकाबला करो तो मैं उन्हें जाकर समझाऊ और यहाँ लोटा ले माऊ ।" प्रभाकरसिंह के दिल में यह खयाल विजली की तरह दौड गया कि उन औरतो की तरफ जाता हूं तो यह नकाबपोश मुझे नामर्द समझेगा और अगर स्वयम् दुश्मन का मुकाविला करके नकाबपोश को औरतों की जाने के लिए कहता हूं तो क्या जाने यह भी उन सभों का दुश्मन हो हो मोर उन औरतों के पास जाकर कोई बुराई का काम कर बैठे। इस खयाल ने क्षणमात्र के लिए प्रभाकरसिंह को चुप कर दिया इसके बाद प्रभाकर सिंह ने कहा, "जो तुम कहो वही कर्स ?" नकाव० । वेहतर होगा कि तुम उन्ही औरतो की तरफ जाम्रो । "बहुत अच्छा" कह प्रभाकरसिंह वडी तेजी के साप उनकी तरफ लपक पटे जो भागती हुई प्रव कुछ कुछ आँखो की प्रोट हो चली थी। वे भागदी चली जाती थी और पीछे की तरफ फिर फिर कर देखती जाती तरफ
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