तीसरा हिस्सा . इतना कह कर बाबाजी वहाँ से रवाना हो गये और देखते देखते प्रभा- करसिंह की नजरो से गायव हो गये बावाजी के चले जाने के बाद कुछ देर तक प्रभाकरसिंह खडे कुछ गोचते रहे, इसके बाद क्रोघे भरी आंखों से रामदास की तरफ देखा और कहा, "गमदास, यद्यपि लोग कहते हैं कि ऐयारों को मारना न चाहिये बल्कि वैद कर रखना चाहिये परन्तु यह काम ऐयारो का और राजा लोगो का है । मैं न तो ऐयार हू और न राजा हूं, इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई ऐसी जगह भी नही है जहां तुझे कैद करके रखू, अतएव मै तरह का रहम नहीं कर सकता । ( रामदास का खजर उसके आगे फेंक कर ) ले अपना स्वजर उठा ले और मेरा मुकाबला कर क्योकि मैं उस आदमी पर वार करना पसन्द नही करता जिसके हाथ में किसी तरह का हर्वा नही है, साथ ही तूने मुझ पर जो जुल्म क्यिा है उसे मै बर्दाश्त भी नही कर सकता। रामदास । (खजर उठा कर ) तो क्या मैं किसी तरह भी माफी तुझ पर किसी पाने लायक नही हू ? प्रभाकर० । नही, अगर इन्दुमति इस दुनिया से न उठ गई होती तो कदाचित् मै तेरा अपराध क्षमा कर सकता, मगर इन्दुमति का वियोग जो केवल तेरी ही दुष्टता के कारण हुआ है मैं सह नहीं सकता। रामदास० । अगर तुम्हारी इन्दुमति को तुमसे मिला हूँ तो? प्रभाकर० । अरे दुष्ट | क्या अब भी तू मुझे धोखा दे सकेगा । जिसकी चिता मै अपनी घाखो देख चुका हू उसके विपय मे तू इस तरह को वानें करता है मानो ब्रह्मा तू ही है । रामदास० । नहीं नही, आपने मेरा मसलब नहीं समझा । प्रभाकर० । तेरा मतलव मै खूब समझ चुका, अब समझने की जरूरत नहीं है, वस अव सम्हल जा और अपनी हिफाजत कर । इतना कह कर प्रभाकरसिंह ने म्यान मे तलवार पोच ली और रामदान को ललकारा । रामदास ने जब देखा कि पब वह भाग कर भी अपने को .
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