पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३१३

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प्रभाकरसिंह के हाथ से नही बचा सकता तब उसने खञ्जर सम्हाल कर प्रभाकरसिंह का मुकाबला किया। प्रभाकरसिंह ऐसे वहादुर प्रादमी से मुकाबला करना रामदास का काम न था, दो ही चार हाथ के लेने देने के बाद प्रभाकरसिंह की तलवार से रामदास दो टुकडे हो जमीन पर गिर पड़ा और वहां की मिट्टी से अपनी तलवार साफ करके प्रभाकर सिंह पुन उसी दीवार की तरफ रवाना हुए जिसके अन्दर इन्दुमति की सुलगती हुई चिता देख चुके थे। तरह तरह की बातें सोचते हुए प्रभाकरसिंह धीरे धीरे चल कर उसी चिता के पास पहुचे जो अभी तक निधूम हो जाने पर भी बडे बडे अंगारो के कारण धधक रही थी और जिसके बीच बीच में हड्डियो के छोटे छोटे टुकडे भी दिखाई दे रहे थे। सातवां बयान यद्यपि सूर्य भगवान् अभी उदय नही हुए थे तथापि उनके आने का समय निकट जान अन्वकार ने पहिले ही से अपना दखल छोडना प्रारम्भ कर दिया था और धीरे धीरे भाग कर पहाड को कन्दरामों और गुफाओं में अपने शरीर को सुकडाता या समेटता हुया घुसा चला जा रहा था। एक छोटे मैदान में जिसे चारो तरफ से ऊ चे ऊचे पहाडों ने घेर रक्खा है हम एक विचित्र तमाशा देख रहे हैं। वह मैदान चार या पांच विगहे से ज्यादा न होगा जिसके वीचोबीच में स्याह पत्थर का पुरसे भर उ चा बहुत बडा और खूबसूरत चबूतरा बना हुया था, जिसके ऊपर जाने के लिए चारो तरफ सीढिया वनो थो । चबूतरे के ऊपर चढ जाने पर देखा कि एक बहुत ही सुन्दर हौज बना हुआ है जिसमे विल्लौर की तरह साफ सुथरा जल भरा हुआ था और उतरने के लिए सगमर्मर को छोटी छोटी सीढिया बनी हुई थी। होज के चारो कोनो पर चार हस इस कारीगरी से बनाये और बैठाये हुए थे कि जिन्हें देख कर कोई भी न कह सकेगा कि ये हस असली नहीं