पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३१५

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भूतनाथ असर कुछ भी न हुमा । उस समय मुझे पुन उसकी सचाई पर शक हुआ और मैं यह जाचने के लिए कि देखू इस औरत की सांस चलती है या नही उसके पेट की तरफ गौर से देखने लगा जिसके प्राधे हिस्प का कपडा घिसक जाने के कारण खुला हुआ था, मगर सास चलने को बाहट मालूम न हुई । इतने- हो मे हवा का एक बहुत कहा.झपेटा प्राया, मैने तो समझा कि इस झपेटे.. के लगते ही वह जाग जायगी और उसके बदन का कपडा भी जो लापरवाही के साथ हर तरह से ढोला पडा हुआ है जरूर घिसक जायगा और उसका सुन्दर तथा सुडौल वदन मुझे अच्छी तरह देखने का मौका मिलेगा मगर अफसोस ऐसा न हुआ । न तो उसकी निद्रा ही भग हुई और न उसके वदन पर से कपडा ही घिसका। मुझे वडा प्राश्चर्य हुआ और अन्त में मैने निश्चय कर लिया कि स्वयम होज के अन्दर उतर कर उस औरत की निद्रा भग करूगा क्योकि उसकी खूबसूरती और उसके अग की सुडौली मेरे दिल को बेतरह मसोस रही थी। मै दिल कहा करके हौज के अन्दर उतरने लगा एक सीढी उतरा, दूसरी सीढी उतरा, तीसरी सीढी पर पैर रक्खा ही था कि मैं डर कर चौंक उठा और मेरे पाश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा क्योकि यकायक वे चारो हस जो हौज के ऊपर खडे थे मोर जिन्हें मैं अच्छी तरह देख भाल चुका था कि वे असली नही बनावटी है, अपनी जगह छोड और गरदन ऊची कर इधर उधर घूमने और बडी वेचनी के साथ मेरी तरफ देखने लगे मानो मेरा हौज के अन्दर उतरना उन्हे वहुत बुरा मालूम हुआ । यह वात सिर्फ दस बारह सायत तक रही, इसके बाद वे अपने बड़े बड़े परो को फैला कर वैतरह मुझ पर टूट पडे जिसे देख मै डर गया और अपना दाहिना हाथ (जिसमें खजर था) प्रागे की तरह बढाये हुए पीछे हट कर चौथो सीढ़ी पर उतर गया । होज के अन्दर चौथी सीढी पर उतर जाना तो मेरे लिए वडा ही भयानक दुघा 1 हौज के अन्दर सीढियो पर जो वहृत से वनावटी जानवर