पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३२४

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२५ तीसरा हिस्सा नारायण । हाँ वह भूतनाथ ही है । इन्द्रदेव ने प्रभाकरसिंह को हाय की लिसी हुई एक छोटी सी किताब दी थी, उसी किताब को पढ कर प्रभा- करसिंह इस तिलिस्म के अन्दर पाए थे, भूतनाथ के उसो ऐयार ने जो हर- देई वना हुया था धोखा देकर वह किताब प्रभाकरसिंह की जेब से निकाल ली और अपने गुरु भूवनाथ को दे पाया। उसी किताब की मदद से भूत- नाथ इस तिलिस्म के अन्दर प्रा पहुंचा है और तुम तीनो को तथा प्रमा- करसिंह को मारने का उद्योग कर रहा है । सैर कोई चिन्ता नही, जहां तक हो सकेगा मै तुम लोगो की मदद करूंगा। अफसोस इस बात का है कि मै इस समय यहा अकेला हू मगर भूतनाथ अपने कई ऐयारो को साय लेकर यहा पाया हुआ है और तुम लोगो की मदद करते हुए इस समय मुझे इतनी फुरसत नहीं है कि घर जाकर अपने प्रादमियो को ले पाऊ या इन्द्र देव को ही इस मामले को खवर करूं, अगर चार पहर को भी मोहलत मिल जाय तो मै इन्द्रदेव को खबर पहुचा सकता हूँ, वह अगर यहां पा जायगा तो फिर किसी दुश्मन के किए कुछ न हो सकेगा इन्दु० । तो हम लोगो को नाप अपने साथ इन्द्रदेवजी के पान क्यों , नहीं ले चलते? नारायण । हा तुम लोगो को मैं अपने साथ वहाले जा सकता हू मगर प्रभाकरसिंह को मदद करनी है । अगर उन्हें इसी अवस्था में छोड कर तुम लोगो को माय लेकर चला जाऊं तो भूतनाथ का ऐयार उन्हें जरूर मार डालेगा क्योंकि वह अभी तक हरदे की सूरत में है और प्रभाकरसिंह उस पर विश्वान करते है। जमना० । तो उन्हें इस मामले की सबर कर देनी चाहिए। नारायण । मै इमी फिरु में हू । तुम्हारे जिन दुश्मन से मै लट रहा घा वह प्रर्यात् भूननाय जन्मी होकर मेरे सामने से भाग गया, में उमो के पौधे दौा हुना चला गया था मगर उसे पकड न सना पयोंकि चीच में उसका एक शागिर्द पहुँच गया और उसने मेरा मुकाबला लिया। अन्त में वह मेरे शाप से मारा गया, मैं उसी को इस गठरी में बाघ कर लळा लाया