९१ तीसरा हिम्सा और नागर ज्यादा बढ कर मानतो दारो० 10 | नही नही, ऐसा क्यो होने लगा, जब तुम उसे वहिन से चढ कर मानती हो और वह भी तुम्हें ऐसा ही मानती है तो क्या वह दो तीन चोठिया तुम्हारी खुशी के लिए नहीं दे सकतो और तुम मेरी खुशी के लिए उन्हें मेरे पास नहीं छोड़ सकती? मनो० ० । नहीं, ऐसा नही हो सकता । गदाधरसिंह और नागर में बहुत गहरी मुहब्बत का बर्ताव हो रहा है, क्या उसे श्राप मेरे ही हाथ से सराव कराया चाहते है ? दारो० ० । नही नही, मै ऐसा नहीं चाहता। मगर तुम चाहोगी तो गदाधरसिंह को इन ची ठियो के बारे में कुछ भी खबर न होने पावेगी और उन दोनो की मुहब्बत का सिलसिला ज्यो का त्यो कायम रहेगा। मनोरमा० । क्या खूब ! आप भी कसो भोली भाली बातें कहते हैं, इन्ही चोठियो को दिखा कर ता श्राप गदावरसिंह को अपने कब्जे में किया चाहते है और फिर कहते है कि इन चीठियो के बारे में गदाधरसिंह को कुछ भी सवर न होगी कि वे आपके कब्जे में आ गई है। दारो० । (शर्मिन्दा हो कर) तुम जानती हो कि मै तुम्हें कितना प्यार करता हू और किस तरह तुम्हारे लिए जान तक देने को तैयार हूं। मनोरमा० । मै सूब जानती हूँ और इसीलिए आपको खातिर उन चीठियो को थोडी देर के लिए नागर ने मांग लाई ह नहीं तो क्या गदा- घरसिंह की शैतानी पोर उद्दण्डता को नहीं जानती । वह बात की वात में विगड बडा होगा और मुझको तया नागर को जहन्नुम मे मिला देगा, बल्कि मै जहा तक समझती हू इन चीठियो का भेद खुलने में यह प्रापका भी दुश्मन हो जायगा। दारोगा० । नही ऐमा नहीं है । इन चीटियो का भेद खुलने से यद्यपि वह हम लोगो का दुश्मन हो जायगा मगर यह हम लोगों को तब तक तक. लोफ न दे सफेगा जब तक ये चोठिया पुन. लोट कर उसके पब्जे में न चतो जायं, मगर ऐसा होना विल्कुल ही असम्भव है । इन चोठियो की
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