पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३१

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१२ भूतनाथ नकल दिखा कर मैं उसे धमकाऊगा सही मगर इन असल चीठियो को ऐसी जगह रक्खू गा कि उसके देवता को भी पता न लगने पावेगा। मनोरमा० । यह सब आपका ख्याल है । आपने सुना नहीं कि जब बिल्ली मजबूर होती है तव कुत्ते के ऊपर हमला करती है । न मालूम नागर के ऊपर गदाधरसिंह को कितना भरोसा है कि ये सब खवरें गदाधरसिंह ने नागर को लिखी, नहीं तो भूतनाथ ऐसे होशियार भादमी को ऐसी भूल न करनी चाहिए थी । इन चीठियो को पढ़ करके एक अदना आदमी भी समझ सकता है कि दयाराम का घातक गदाधरसिंह ही है और वही अव उनकी जमना सरस्वती नाम को दोनो स्त्रियों को मारना चाहता है। क्या ऐसी चीठी का प्रगट हो जाना गदाधरसिंह के लिए कोई साधारण वात है ? और ऐसा होने पर क्या वह नागर को जीता छोड देगा? कदापि नही । इसके अतिरिक्त अभी तो चोठियो का सिलसिला जारी ही है और वह जमना तथा सरस्वती को मारने के लिए तिलिस्म के अन्दर घुसा ही है, प्रागे चल कर देखिए तो सही कि कसो कैसी चोठिया प्रातो है और उनमें क्या क्या खबरें वह लिखता है। सिर्फ इन्ही दो चार चीठियो पर अभी श्राप क्यो इतना फूल रहे हैं दारोगा इसका जवाब कुछ दिया ही चाहता था कि दरवाजे की तरफ से घण्टो वजने की आवाज आई । उसके जवाव मे दारोगा ने भी एक घण्टी वजाई जो उसके पास पहिले ही से रक्खी हुई थी। एक लडका लपकता हुआ दारोगाके सामने प्राया और बोला, “गदाधरसिंह पाए हैं, दर्वाजे पर खडे हैं।" लडके को वात सुन कर दारोगा ने मनोरमा की तरफ देखा और कहा, "प्राया तो है वडे मोके पर।" "मौके पर नही बल्कि वेमौके !" इतना कह कर मनोरमा ने वे चीठिया दारोगा के सामने मे उठा ली जो गदावरसिंह के हाथ की लिखी हुई थी या जिनके बारे में वही देर से वहस हो रही थी, और यह कह कर उठ सटी हुई कि 'मैं दूसरे कमरे में जाती हूँ, उसे बुलाइये मगर मेरे यहा रहने को समे गवर न होने पावे ।'