दसवां बयान - . गदाधरसिंह को लेने के लिए दारोगा खुद दर्वाजे तक गया और वढे आवभगत के साथ अपनी बैठक में ले पाया । मामूली बातचीत और कुशल मगल पूछने के बाद दोनो में इस तरह की बातचीत होने लगी दारोगा० । मने आपके घर यादमी भेजा था मगर वह मुलाकात न होने के कारण सूसा ही लौट आया और उसी की जुबानी मालूम हुआ कि पाप कई दिनो से किसी कार्यवश वाहर गए हुए हैं। गदाधर० । ठीक है, मैं कई दिनो से अपने घर पर नहीं हू, मगर श्राप को यादमी भेजने की जरूरत क्यो पडी? दारोगा । आप जानते हैं कि मैं जब किसी तरदुद में पड़ जाता हू तव सव के पहिले प्रापको याद करता हू क्योकि मेरे दोस्तो में निवाय आपके कोई भी ऐमा लायक और हिम्मतवर नहीं है जो समय पड़ने पर मेरी मदद कर सके। गदाधर० । कहिए क्या काम ह ? मै आपके लिए हर वक्त तयार रहता हूं और प्रापसे भी बहुत उम्मीद रखता हूं। मैं सच कहता हूं कि आपकी दोस्ती का मुझे बहुत बडा घमण्ड है और यही भदब है कि मैं इस समय आपके पास आया हूँ क्योकि इधर महीनो ने मै उस्त मुसीबत में गिरातार हो रहा हूँ, अगर मेरो इन मुसीबत का शीघ्र अन्त न होगा नो मुझे इन दुनिया से एक दम अन्तान हो जाना पडेगा । दारो० । आपने तो बडे ही तग्दुद की बात सुनाई । कहिये तो सही पया मामला है गदायर० । पहिले ग्राप ही कहिये कि मुझे क्यो याद किया या दारोगा० । नही पहिले मैं पापका हाल सुन लूगा तो कुछ कहूँगा। नदाघरा नही, पहिले प्रापका हाल सुने बिना कुछ भी नहीं बताऊगा। दारोगा। मच्या पहिले मेरी ही रामकहानी सुन लीजिए। प्राप जानते ?
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