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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३३४

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कि स्वयम् मुझे लाल लाल पासें करके धमका चुके है और कह चुके हैं कि 'देख दारोगा, होशियार हो जा, अपने राजा के भरोसे पर भूला न रहियो मैं बहुत जरद सावित कर दूंगा कि तू उस कुमेटी का मेम्बर है और इसके वाद तुझे सूबर के गलोज में रख कर फुकवा दूंगा खवरदार, मेरे घमकाने का हाल भाई साहब से कदापि न कहियो नहीं ता दुर्दशा का दिन ....' गदाधर० । इससे मालूम है ता है कि आपको उस गुप्त कुमेटी का हाल उन्हें मुझसे ज्यादा मालूम हो चुका है, ऐसी अवस्था में प्रापको चाहिए कि उन्हे इस दुनिया से उठा कर हमेशा के लिए निश्चिन्त हो जाइए नही तो उनका जीते रहना आपके लिए सुखदाई न रहेगा। दारोगा० । (कुछ देर तक पाश्चर्य से भूतनाथ का मुह देख कर) पया- यह बात ग्राप हमहर्दी के साथ कह रहे है ? गदाधर० । वेशक, मै प्रापसे दिल्लगी नही करता। दारोगा । अगर मैं ऐमा करने के लिए तैयार हो जाऊ तो जरूरत पटने पर क्या आप मेरी मदद करेंगे ? गदाधर० । जरर मदद कम्बंगा मगर शर्त यह है कि आप अपना कोई भेद मुझसे छिपाया न करें ? दारोगा० । मै तो अपना कोई भेद आपसे नही छिपाता और भविष्य के लिए भी कहता हूँ कि न छिपाऊगा। गदाधर० । वेशक आप छिपाते है। दारोगा । नमने के तौर पर कोई वात कहिये? गदाधर० । पहिने तो इस कुमेटी के विषय में ही देख लोजिए, भाज तक प्रापने म विपरा में मुझमे गुध कहा दारोगा 0 1 (बुछ देर तक सिर नीचा करके और सोच के) अच्छा में अपनी भूल स्वीकार करता हूँ और वनम साकर एकरार करता हूँ कि इस गुमेटी का भेद और म्यान तुमको वता दूंगा। गदाधर० । मै भी कसम खाकर एकरार करता हू किहर एक काम में प्रापको मदद तव तक बरावर करता रहगा जब तक आप मेरे नाय या मेरे ?