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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३५

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भूतनाथ
३८
 


से घायल किया। इसी समय ऊपर की तरफ से आवाज आई,"शाबाश इंदु शाबाश! इन लोगो की बातचीत से मै पहिचान गया कि तू इदुमति है।"

यह बोलने वाला भी उसी पेड़ पर था जिस पर इन्दु थी मगर उससे ऊपर की एक ऊची डाल पर बैठा हुआ था जिसकी आवाज सुन कर इन्दु- मति घबड़ा गई और सोचने लगी कि यह कोई उसका दुश्मन तो नही है। उसने पूछा, "तू कौन है और यहां कब से बैठा हुअा है ?"

जवाब० । मै तुमसे थोड़ी देर पहिले यहां आया हूँ बल्कि यो कहना चाहिए कि दूर से तुम लोगो को आते देख कर इस पेड़ पर चढ़ कर बैठा या। मै तुम्हारा पक्षपाती हूँ और मेरा नाम भूतनाथ है। तुम तीर कमान मुझको दो, मै अभी तुम्हारे दुश्मनो को जहन्नुम मे पहुंचा देता हूँ।

इन्दु० । बस बस बस, मै ऐसी बेवकूफ नही हूँ कि इस समय तुम्हारी बातो पर विश्वास कर लू और अपना तीर कमान जिससे मै अपनी रक्षा कर सकती हूँ तुम्हारे हवाले करके अपने को तुम्हारी दया पर छोड़ दू । यद्यपि मै औरत हूँ और मेरी कमान कड़ी नही है तथा मेरे फेके तीर दूर तक नहीं जाते, तथापि मेरा निशाना नही चूक सकता और मै नजदीक के दुश्मनो को बच कर नहीं जाने दे सकती । खैर तुम जो कोई भी होवो समझ रक्खो कि इस समय मै तुम्हारी बातो पर विश्वास न करूंगी और तुम्हे कदापि नीचे न उतरने दूंगी, जरा भी हिलोगे तो मै तीर मार कर तुम्हे दूसरी दुनिया में पहुंचा दूंगी।

इतने ही मे नीचे कोलाहल बढ़ा और इन्दुमति ने तीर मार कर और एक आदमी को गिरा दिया । फिर ऊपर से आवाज आई-"शाबाश इन्दु शाबाश | तू तुझे मुझे नीचे उतरने दे, फिर देख मै तेरे दुश्मनो से कैसा बदला लेता हूँ।।"

इन्दु० । कदापि नही, मैं अपने दुश्मनो से आप समझ लूंगी ।

आवाज० । और जब तुम्हारे तीर खत्म हो जायगें तो तुम क्या करोगी?