पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३४३

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१.८ भूतनाथ जमना० । हम लोगो ने एक तौर पर इस दुनिया ही को छोडा हुना है और विल्कुल मुर्दो की सी हालत मे पहाडो खोह और कन्दरामो मे रह कर जिन्दगी के दिन विता रही है, इसलिए आज कल को दुनिया का हाल मालूम नही है अस्तु मै नही कह सकती कि उसने मेरे पति को मार कर क्या फायदा उठाया, परन्तु इतना मै जरूर जानती हूँ कि मेरे पति को मौत भूतनाथ के ही हाथ से हुई है। दारोगा० । यह बात तुमसे किसने कही ? जमना० । सो मैं तुमसे नहीं कह सकती ? दारोगा० । खैर न कहो, तुम्हे अख्तियार है, मगर मैं फिर भी इतना जरूर कहूंगा कि तुम्हारा ख्याल गलत है। भूतनाथ ने तुम्हारे पति को कदापि नही मारा और कदाचित् चोखे मे ऐसा हो भी गया हो तो धोखे की बात पर सिवाय अफसोस करने और कुछ भो उचित नहीं है । कई दफे ऐसा होता है कि धोखे मे मा का पैर बच्चे के ऊपर पड जाता है । तो क्या इसका बदला बच्चे को मा से लेना चाहिए ? कभी नही । तुम खुद जानती हो कि भूतनाथ से जो वास्तव में गदाघरसिंह है तुम्हारे पति की कैसी दोस्ती थो। जमना० । वेशक मै इस बात को जानती हूं और यह भी मानती हूं कि कदाचित् घोते हो मे भूतनाय से वह काम हो गया, परन्तु पाप हो वताइए कि क्या इस प्रवर्म को छिपाने के लिए भूतनाथ को हम लोगो का पीछा करना चाहिए? दरोगा० । हा, यह वेशफ उसकी भूल है, इसके लिए मै उसे ताडना दूगा, परन्तु मै तुम्हे सच्चे दिल और हमदर्दी के साथ राय देता कि तुम भूतनाथ के साथ दुश्मनी का खयाल छोड दो नही तो पछत्तयोगी और तुम्हारा नस्त नुकसान होगा क्योकि तुम भूतनाय का मुकाबला नहीं कर सक्ती, तुम अवला और निर्बल ठहरी और वह होशियार ऐयार तिस पर उमरे दोन्न भी बहुत गहरे लोग है । जमना० । मै जानती है कि उसके और हमारे बीच हाथी और चिऊटी