पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३६

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पहिला हिस्सा
 


इन्दुमति० । मेरे तीरो की गिनती दुश्मनो की गिनती से बहुत ज्यादा है, तुम इसकी चिन्ता न करो और चुपचाप बैठे रहो ।

आवाज० । नही इन्दु नही, तुम्हें मालूम नही है कि तुम्हारे दुश्मन यहाँ बहुत ज्यादा है, थोड़ी देर में वे इकट्ठे हो जायगें और तब तुम्हारे तीरो की गिनती कुछ काम न करेगी।

इन्दु० । ऐसी अवस्था में तुम्ही क्या कर सकते हो जो एक औरत का मुकाबला करके नीचे नहीं उतर सकते ! खबरदार? व्यर्थ को बकवाद करके मेरा समय नष्ट न करो!!

फिर नीचे कोलाहल बढ़ा और इन्दुमति के तीर ने पुन एक आदमी का काम तमाम किया। इन्दु के ऊपर की तरफ बैठा हुया आदमी नीचे उतरने लगा और बोला, "खबरदार इंदु, मुझ पर तीर न चलाइयो और सच जानियो कि मै भूतनाथ हूँ और अब नीचे उतरे बिना नही रह सकता!!"

इदु० । मै जरूर तीर मारूंगी और भूतनाथ के नाम का मुलाहजा न करूंगी।

इतना कहकर इन्दु ने उसकी तरफ तीर सीधा किया मगर घबड़ा कर दिल में सोचने लगी कि कही वह भूतनाथ ही न हो। उसी समय किसी हर्वे की चमक उसकी आँखो में पड़ी और उसकी तेज अक्ल ने तुरंत समझ लिया कि यह वरछी है जिससे कुछ आगे बढ़ कर वह जरूर मुझ पर हमला करेगा,अस्तु दिल कड़ा करके इन्दु ने उस पर तीर चला ही दिया जो कि उसके मोढे़ मे लगा, मगर इस चोट को सह कर ओर कुछ नीचे उतर कर उसने इन्दु पर वरछी का वार किया, साथ ही इन्दु का दूसरा तीर पहुँचा जो कि न मालूम कहां लगा कि वह लुढ़क कर जमीन पर आ रहा और बेहोश हो गया । परन्तु उसका वरछी का वार भी खाली नहीं गया। इन्दु के जंघे मे कुछ चोट आई, खून का तरारा वह चला और दर्द से वह बेचैन हो गई। कुशल हुआ कि वह बखूबी इन्दु के पास नहीं पहुंचा था अन्दाज मे कुछ दूर ही था इसलिए वरछी की चोट भी पूरी न बैठी, अगर कुछ और नजदीक