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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३७

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भूतनाथ
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या गया होता तो इन्दु भी पेड़ पर न ठहर सकती जरूर नीचे गिर पड़ती।

इन्दु जनाना थी मगर उसका दिल मर्दाना था । यद्यपि इस समय वह दुश्मनो से घिरी हुई थी और बचने की आशा बहुत कम थी तथापि उसने अपने दिल को खूब सम्भाला और दुश्मनो को अपने पास फटकने न दिया। पेड़ पर से जिस आदमी ने इन्दु को जख्मी किया था इन्दु के हाथ से जख्मी होकर उसके गिरने के साथ ही नीचे वालो मे खलबली पड़ गई। सभी ने गौर के साथ उसे देखना और पहिचानना चाहा। एक ने कहा, “यह तो भूतनाथ है ।" दूसरे ने कहा, "फिर इन्दु ने इसे क्यो मारा ?"

इत्यादि बातें होने लगी जो इन्दु के दिल मे तरह तरह का खुटका पैदा करने वाली थी मगर उसने उसकी कुछ भी परवाह न की और दुश्मनों पर तीर का वार करने लगी। ग्यारह दुश्मनो मे से सात को उसने जख्मी किया जिसमे उसके बारह तीर खर्च हुए मगर पांच दुश्मनो ने बड़ी चालाकी से अपने को बचाया और सर पर ढाल रख के इन्दु को पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगे। इन्दु ने पुन तीर मारना आरम्भ किया मगर इसका कोई अच्छा नतीजा न निकला क्योकि उसके चलाए हुए तीर सब ढाल पर टक्कर खा के बेकार हो जाते थे।

भव इन्दु का कलेजा धड़कने लगा। वह जख्मी हो चुकी थी और उनका तरकस भी खाली हो चला था, पेड़ पर चढ़ने वाले बडे़ ही कट्टर और लड़ाके आदमी थे प्रतएव उन्होने इन्दु के तीरो की कुछ भी परवाह न की और उसके पास पहुँच कर उसे गिरफ्तार करने पर ही तुल गए, ऐसी हालत देख इन्दु ने भी अपने को उनके हाथ में फंसाने की वनिस्वत जान दे देना अच्छा समझा। वह लुढ़क कर पेड़ पर से नीचे गिर पड़ी और सून्न चोट खाकर बेहोश हो गई ।

छठवां बयान

जब वह होश में आई और उनने आँखें खोली तो अपने को एक सुन्दर मसहरी पर पडे़पाया और मय सामान कई लोंडियो को खिदमत के लिए हाजिर